प्रयागराज, 31 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर के सहायक महानिरीक्षक पंजीयन (स्टाम्प एवं पंजीयन) से पिछले एक वर्ष में पंजीकृत विवाहों का ब्यौरा मांगा है।
कोर्ट ने कहा कि पता चला है कि वैध विवाह का दावा साबित करने के लिए पंजीकरण कार्यालय के अधिकारियों की मिलीभगत से विवाह पंजीकृत किए जा रहे हैं। विभिन्न संगठनों की तरफ से फर्जी विवाह प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं और उनको पंजीकृत किया जाता है ताकि जोड़े पुलिस सुरक्षा के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा सकें। कोर्ट ने कहा कि स्थानीय पुलिस और प्रशासन के समर्थन के बिना यह सम्भव नहीं है। इस पर रोक लगनी चाहिए।
यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने शनिदेव व अन्य की याचिका पर दिया है। याची ने परिजनों से अपने जीवन को खतरा बताते हुए याचिका दायर कर सुरक्षा की गुहार लगाई है। याची जिला इटावा का निवासी है। उसने 03 जून 2007 को आर्य समाज मंदिर, ग्रेटर नोएडा में कथित विवाह किया। जारी विवाह प्रमाण पत्र के आधार पर याची ने विवाह के पंजीकरण के लिए आवेदन किया।
सरकारी वकील का कहना है कि एक जाली दस्तावेज के आधार पर विवाह पंजीकरण कराया गया है। कोर्ट ने कहा कि अपने जीवन साथी को चुनने और वैवाहिक सम्बंध या लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है लेकिन जाली दस्तावेज के आधार पर सुरक्षा नहीं दी जा सकती। प्रदेश में विवाह कराने के लिए की फर्जी संस्थान सक्रिय है। ऐसी अधिकांश सोसायटी या संगठन नोएडा या गाजियाबाद में स्थित है। इस न्यायालय ने कई मामलों में देखा है ’’हर दिन 10-15 मामलों में’’ विवाह धोखाधड़ी से किए गए हैं और उसके बाद फर्जी कागजात पर या तो प्रयागराज या गाजियाबाद और नोएडा में विवाह पंजीकृत किए गए हैं।
न्यायालय ने गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर के सहायक महानिरीक्षक पंजीकरण (स्टाम्प एवं पंजीकरण) को अगली सुनवाई पर न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने को कहा है। साथ ही पिछले एक वर्ष में पंजीकृत विवाहों का ब्यौरा भी प्रस्तुत करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश के महानिरीक्षक को 1 अगस्त 2023 से 1 अगस्त 2024 तक उत्तर प्रदेश में पंजीकृत विवाहों की संख्या भी जिलेवार दर्ज करेंगे। प्रमुख सचिव (स्टाम्प एवं पंजीयन), लखनऊ को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि आदेश का अनुपालन किया जाय।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे / पवन कुमार श्रीवास्तव