
– हाई कोर्ट ने बलात्कार के मामले में दस साल की कैद की सजा पाए एक आरोपित को बरी करते हुए कहा- डीएनए रिपोर्ट से केवल पितृत्व साबित होता है, इससे सहमति के अभाव की बात का पता नहीं चलता है।
नई दिल्ली, 3 अप्रैल (Udaipur Kiran) । दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि डीएनए रिपोर्ट से केवल पितृत्व साबित होता है, इससे सहमति के अभाव की बात का पता नहीं चलता है। जस्टिस अमित महाजन की बेंच ने रेप के मामले में दस साल की कैद की सजा पाए एक आरोपित को बरी करते हुए ये टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि डीएनए रिपोर्ट से भले ही ये साबित हो गया है कि महिला की कोख से जन्मे शिशु का जैविक पिता आरोपित ही है, लेकिन केवल गर्भस्थ हो जाना ही रेप का अपराध सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि यह भी साबित न किया जाए कि संबंध सहमति से बनाया गया था या सहमति के अभाव में बनाया गया था। यह एक सर्वविदित कानून है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत अपराध सहमति के अभाव पर टिकी हुई है। कोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य सहमति के अभाव को नहीं दर्शाता है।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी की वजह भी नहीं बतायी गई है और बिना स्पष्टीकरण के देरी से दर्ज की गई एफआईआर सामाजिक दबाव का नतीजा हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आरोप सहमति से बने संबंध को रेप के रुप में स्थापित करने के लिए लगाए गए थे ताकि आरोप लगाने वाली महिला और उसके परिवार को समाज के तंजों का सामना न करना पड़े। कोर्ट ने कहा कि आरोपित को संदेह का लाभ मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कानून केवल चुप्पी को सहमति नहीं मानता लेकिन यह उचित संदेह से परे सबूतों के अभाव में दोषी भी नहीं ठहराता। यही वजह है कि इस मामले में संदेह बना हुआ है। ये संदेह अटकलों के कारण नहीं है बल्कि सबूतों के अभाव के कारण है।
हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल के दौरान न केवल महिला के बयानों में विरोधाभास पाया गया बल्कि रेप की पुष्टि करने के लिए मेडिकल और फोरेंसिक साक्ष्य भी नहीं मिले। महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पड़ोस में रहने वाले युवक ने लूडो खेलने के बहाने उसे अपने घर बुलाकर कई बार उससे रेप किया। इस मामले में जनवरी 2018 में युवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और दिसंबर 2022 में ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराते हुए दस साल की कैद की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट के इसी आदेश को आरोपित ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
(Udaipur Kiran) /संजय
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(Udaipur Kiran) / प्रभात मिश्रा
