
शिमला, 06 जून (Udaipur Kiran) । राजधानी शिमला स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय एवं चिकित्सालय (आईजीएमसी) में ओपीडी पर्ची के लिए 10 रुपये शुल्क वसूली पर अंतिम निर्णय अभी नहीं हुआ है। इस संबंध में अस्पताल प्रशासन ने शुक्रवार को एक प्रेस बयान जारी कर स्पष्ट किया है कि इसे अस्पताल की रोगी कल्याण समिति (आरकेएस) की कार्यकारिणी समिति की बैठक में विचारार्थ रखा जाएगा।
प्रशासन की ओर से जारी नोट में कहा गया है कि ओपीडी पंजीकरण शुल्क समेत अन्य उपभोक्ता शुल्कों को लेकर फैसला कार्यकारिणी समिति (ईसी) की बैठक में लिया जाएगा। इसके बाद इस प्रस्ताव को रोगी कल्याण समिति की आम सभा (जनरल बॉडी) के समक्ष अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। अंतिम मुहर जनरल बॉडी की सहमति के बाद ही लगेगी। ऐसे में जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक आईजीएमसी में ओपीडी पर्ची के लिए कोई शुल्क नहीं वसूला जाएगा। यह स्पष्टीकरण ऐसे समय आया है जब हाल ही में राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रदेश भर के सरकारी अस्पतालों में ओपीडी शुल्क वसूलने की अधिसूचना जारी की गई थी।
अधिसूचना के अनुसार सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों से ओपीडी पंजीकरण के समय 10 रुपये शुल्क वसूला जाएगा। इस फैसले के पीछे तर्क यह दिया गया कि इससे अस्पतालों को अपने स्तर पर स्वच्छता, उपकरणों के रखरखाव और बुनियादी सुविधाओं में सुधार करने में मदद मिलेगी।
आईजीएमसी प्रशासन के अनुसार इस आदेश के मद्देनज़र अस्पताल ने अपनी आंतरिक प्रक्रिया शुरू की है लेकिन शुल्क लागू करने से पहले सभी संबंधित समिति की औपचारिक स्वीकृति आवश्यक है। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने भी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह निर्णय सरकार की ओर से थोपा नहीं गया है बल्कि अस्पतालों की रोगी कल्याण समितियों की मांग के आधार पर लिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने अस्पतालों को स्वायत्त बना दिया है और उन्हें यह अधिकार दिया है कि वे अपने संसाधनों और आवश्यकताओं के अनुसार इस तरह के निर्णय ले सकें। हालांकि मुख्यमंत्री ने पिछले कल स्पष्ट किया कि यह कदम कैबिनेट की उप-समिति की सिफारिशों के आधार पर उठाया गया, लेकिन अंतिम अधिकार स्थानीय रोगी कल्याण समितियों को ही दिया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि यह बाध्यकारी आदेश नहीं है। यदि किसी अस्पताल के पास पर्याप्त संसाधन हैं तो वह यह शुल्क नहीं भी ले सकता। मुख्यमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि रोगी कल्याण समितियों में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भागीदारी होती है, ऐसे में यह फैसला सामूहिक सहमति और अस्पताल की आंतरिक आवश्यकता को देखते हुए लिया जाएगा।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
