प्रयागराज, 23 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जस्टिस सुनीता अग्रवाल (पूर्व न्यायाधीश, इलाहाबाद हाईकोर्ट (वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश, गुजरात उच्च न्यायालय) के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए न्यायालय की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 15(1)(बी) के तहत एक वकील द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति सुरेन्द्र सिंह-प्रथम की पीठ ने याचिका को तुच्छ, परेशान करने वाली, गैर-जिम्मेदाराना और ’गलत धारणा’ वाली करार दिया और कहा कि संस्थान के समुचित कामकाज के हित में इस तरह के आवेदनों को हर तरह से हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
अधिवक्ता अरुण मिश्रा का कहना था कि वर्ष 2020 में उनके द्वारा दायर एक रिट याचिका को न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने (7 दिसम्बर, 2020 को) उन्हें अपनी दलीलें पेश करने की अनुमति दिए बिना खारिज कर दिया था और उन पर 15,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था।
अधिवक्ता 23 फरवरी, 2021 को न्यायमूर्ति अग्रवाल की अगुवाई वाली खंडपीठ द्वारा पारित एक अन्य आदेश से भी व्यथित थे, जिसमें एक मामले में वह याचिकाकर्ता की ओर से पेश हो रहे थे, जिसे ’अभियोजन के अभाव’ के कारण खारिज कर दिया गया था। उनका कहना था कि उसी दिन, हालांकि अन्य वकीलों के मामलों को अभियोजन के अभाव के कारण खारिज नहीं किया गया था और दूसरी तारीख लगा दी गई थी।
उन्होंने तर्क दिया कि यह आदेश जानबूझकर पक्षपातपूर्ण तरीके से पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य उन्हें परेशान करना और नुकसान पहुंचाना था, जो वास्तव में अपने कोर्ट की अवमानना के समान है। हाईकोर्ट ने उनकी दलील में कोई गुण नहीं पाते हुए उनकी याचिका को खारिज करते हुए कहा कि न्यायमूर्ति अग्रवाल का कृत्य और आदेश पारित करने का आचरण अधिनियम में परिभाषित “आपराधिक अवमानना“ के दायरे में किसी भी तरह से नहीं आता। न्यायालय ने आगे कहा कि एक अधिवक्ता के रूप में कोर्ट, न्यायालय के एक अधिकारी के रूप में उससे एक निश्चित सीमा तक जिम्मेदारी और संयम की अपेक्षा करता है।
न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि आवेदक-अधिवक्ता ने पहले भी न्यायमूर्ति अग्रवाल के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए लिखित सहमति मांगते हुए यूपी के महाधिवक्ता कार्यालय में एक आवेदन प्रस्तुत कर अपनी शिकायत उठाई थी। हालांकि, उक्त आवेदन 7 मई, 2024 को खारिज कर दिया गया था।
हाईकोर्ट ने आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देने से महाधिवक्ता के इनकार को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया था। इसलिए, न्यायालय ने आगे कहा कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए, अधिनियम निर्माताओं ने ऐसे आवेदनों को सीधे दायर करने पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक समझा तथा उन्हें महाधिवक्ता की लिखित सहमति से दायर करने की आवश्यकता बताई।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे