कोलकाता, 07 जनवरी (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सामने एक बड़ी चुनौती है—हिंदी भाषी नेताओं और कैडरों की कमी। यह कमी पार्टी को हिंदी भाषी मतदाताओं से जुड़ने में बाधा बना रही है। हालिया संगठनात्मक रिपोर्टों और सर्वेक्षणों में इस समस्या को पार्टी के जमीनी स्तर पर कमजोर जुड़ाव का मुख्य कारण बताया गया है।
रिपोर्टों के अनुसार, कोलकाता के बड़ाबाजार, पोस्ता और जोड़ासांको, हावड़ा, उत्तर 24 परगना के बैरकपुर और टिटागढ़, हुगली का चंदननगर, भद्रेश्वर और चांपदानी तथा पश्चिम बर्दवान के आसनसोल जैसे क्षेत्रों में हिंदी भाषी आबादी बड़ी संख्या में है। इसके बावजूद, हिंदी भाषी प्रतिनिधियों की कमी के कारण पार्टी इन मतदाताओं से प्रभावी ढंग से जुड़ने में असमर्थ रही है।
—————
आंदोलनों पर प्रभाव
यह समस्या उस समय स्पष्ट रूप से दिखाई दी जब आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की एक महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के खिलाफ प्रदर्शन किए गए। हालांकि, राज्य भर में प्रदर्शन आयोजित किए गए, लेकिन हिंदी में संवाद की कमी के कारण आंदोलन को जमीनी स्तर पर प्रभावी और टिकाऊ रूप से संचालित करना मुश्किल हो गया।
यह भी बताया गया है कि पार्टी कार्यकर्ताओं में आंदोलन को लेकर एक प्रकार की निष्क्रियता बढ़ रही है, जिसके कारण वे ज्वलंत मुद्दों पर लगातार अभियान चलाने में असमर्थ हो रहे हैं।
——————
केंद्रीय समिति की बैठक में उठेगा मुद्दा
पार्टी की केंद्रीय समिति की दो दिवसीय बैठक 17 से 19 जनवरी तक न्यू टाउन में आयोजित की जाएगी, जिसमें इन मुद्दों पर चर्चा की उम्मीद है। 17 जनवरी को दिवंगत ज्योति बसु, जो पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रख्यात मार्क्सवादी नेता थे, के नाम पर एक शोध केंद्र का उद्घाटन किया जाएगा। अगले दिन, केंद्रीय समिति आगामी पार्टी कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक प्रस्ताव पर चर्चा कर सकती है, जो अप्रैल में मदुरै, तमिलनाडु में होगी।
पार्टी कांग्रेस से पहले फरवरी में पश्चिम बंगाल राज्य सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, संभवतः कोलकाता के आसपास के किसी जिले में। पार्टी नेता इन बैठकों के माध्यम से संगठनात्मक कमजोरियों को दूर करने और पार्टी के संपर्क प्रयासों को पुनर्जीवित करने की उम्मीद कर रहे हैं।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर