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यौन शोषण मामले में कोर्ट ने समझौता स्वीकार करने से किया इनकार, याचिका खारिज

Allaabad High Court

प्रयागराज, 23 अगस्त (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लगातार यौन शोषण करने वाले एक आरोपित व्यक्ति को परिवार के बीच आपसी समझौते के आधार पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पाक्सो) के तहत दर्ज एक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया।

हाईकोर्ट ने कहा आरोपित लगातार यौन शोषण करने वाला व्यक्ति है। यद्यपि उसे हाई कोर्ट की एक अलग पीठ ने इससे पहले पाक्सो के दो अन्य मामलों में समझौता स्वीकार कर लिया था और एक ही आरोपित के खिलाफ दो पाक्सो मामलों को रद्द कर दिया था। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने टिप्पणी की कि आरोपित व्यक्ति लगातार यौन सम्बंध बनाता था। क्योंकि वह दो समान मामलों में संलिप्त पाया गया था। याची के खिलाफ मुकदमा थाना कोतवाली, जिला जालौन में दर्ज है।

अदालत ने कहा, “आवेदक लगातार यौन शोषण करता रहा है और दो अन्य अलग-अलग मामलों में भी संलिप्त पाया गया है। इसलिए सजा की गम्भीरता व साधन सम्पन्न व्यक्ति द्वारा बच्चों का शोषण की धमकी को ध्यान में रखते हुए इस अदालत को आवेदक के मामले में कोई दम नहीं लगता, भले ही समान प्रकृति के दो अलग-अलग मामलों को अन्य पीठ ने समझौते के आधार पर रद्द कर दिया हो।“

अदालत ने पीड़ित के बयान पर गौर किया और पाया कि जब वह 13 वर्ष का था, तब उसके साथ “अप्राकृतिक यौन सम्बंध“ बनाया गया था और तीन वर्ष बाद ही उसने इसके खिलाफ शिकायत करने का साहस जुटाया। यह भी बताया गया था कि आरोपित ने घटना को अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड भी कर लिया था।

हाई कोर्ट ने कहा, “अपराध गम्भीर है और बच्चे के मनोविज्ञान और व्यवहार पर इसका व्यापक असर पड़ेगा। इसके अतिरिक्त, यदि आरोप साबित हो जाते हैं तो आवेदक को आजीवन कारावास से लेकर जीवन तक की सजा दी जा सकती है।“ न्यायालय ने कहा कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध सबसे जघन्य अपराधों में से हैं, जो पीड़ितों पर गहरे और स्थाई घाव छोड़ जाते हैं।

न्यायालय ने कहा, “ऐसे आघात के मनोवैज्ञानिक प्रभाव बहुत गहरे और बहुआयामी होते हैं, जो बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिरता और सामाजिक सम्बंधों को प्रभावित करते हैं और उनके जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते हैं। आघात भावनात्मक, व्यवहारिक और सामाजिक समस्याओं का एक ऐसा सिलसिला पैदा कर सकता है जो वयस्क होने तक बना रहता है।“

आरोपी याची राम बिहारी ने दावा किया था कि दोनों पक्षों के बीच विवाद वित्तीय लेन देन से जुड़ा था। पीड़िता के पिता ने जनवरी 2021 में भैंस खरीदने के लिए आरोपी से 40,000 रुपये उधार लिए थे। उसके पिता ने वादा किया था कि वह तीन महीने के भीतर रकम चुका देंगे और रोजाना 2 लीटर दूध देंगे। आरोपित ने कहा कि पैसे वापस नहीं किए गए और दूध भी नहीं दिया गया तथा जब उसने पैसे वापस मांगे तो पीड़िता के पिता ने उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करा दिया।

आखिरकार, दोनों पक्षों में समझौता हो गया और आरोपी पक्ष ने मामले को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत को बताया गया कि इसी तरह की दो एफआईआर पहले भी हाई कोर्ट द्वारा रद्द की जा चुकी हैं। हालांकि, राज्य और शिकायतकर्ता ने पोक्सो अधिनियम के मामले को रद्द करने का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा करने से समाज में गलत संकेत जाएगा और आरोपित को और अधिक मासूम बच्चों का शोषण करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। अपराध की गम्भीरता और बच्चे पर इसके प्रभाव को देखते हुए अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे / पवन कुमार

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