उमरिया, 31 अगस्त (Udaipur Kiran) । जिले में 34 वर्ष पुराने एक मामले में जिला न्यायालय ने पक्षकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कोल फील्ड्स लिमिटेड कंपनी की करोड़ों की संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिया।
मामला वर्ष 1991 का है, उस समय उमरिया जिले का गठन नही हुआ था, उस समय उमरिया शहडोल जिले में आता था। 34 वर्ष पूर्व कोल इंडिया की साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड कंपनी के जोहिला एरिया द्वारा पिनौरा प्रोजेक्ट में आवासीय कालोनी के निर्माण के लिए टेंडर काल किया गया था जिसमे कई ठेकेदारों ने टेंडर डाला था और कम रेट के कारण तिरुपति बिल्डकॉन का टेंडर पास हुआ और निजी ठेकेदार तिरुपति बिल्डकॉन ने आवासीय कालोनी का निर्माण किया लेकिन एसईसीएल ने ठेकेदार के तय रकम का भुगतान नहीं किया।
जिसको लेकर ठेका कंपनी तिरुपति बिल्डकॉन ने न्यायालय की शरण लिया और तत्कालीन जिला न्यायालय शहडोल ने ठेका कंपनी के पक्ष में फैसला दिया। फैसला आने के बाद साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड ने फैसले के विरुद्ध मध्यप्रदेश हाईकोर्ट गई, 20 साल बाद भी वहां से मामले में ठेका कंपनी के ही पक्ष में फैसला आया जिसके बाद एसईसीएल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपील को ही खारिज कर दिया और जिला न्यायालय के फैसले को यथावत रखा, जिसके बाद पक्षकार की अपील पर जिला न्यायालय ने बीते गुरुवार को एसईसीएल के परियोजना प्रबंधक जीएम कॉम्प्लेक्स सहित वाहनों को कुर्क करने के लिए न्यायालय से अधिकृत कर्मचारियों को आदेश के साथ भेजा, जिसके बाद साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स के अधिकारियों के होश उड़ गए और उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों से बातचीत के बाद ठेका कंपनी को दी जाने वाली राशि तीन करोड़ चालीस लाख रुपए 2 सितंबर तक अदा करने का लिखित पत्र दिया। जिसके बाद न्यायालय के मुहर्रिर वापस हुए।
इस पूरे मामले में एसईसीएल के अधिकारियों की मनमानी और आम जनता के साथ किए जाने वाले आर्थिक शोषण की कलई खुलकर सामने आ गई।
तिरुपति बिल्डकॉन के अधिवक्ता पुष्पराज सिंह ने बताया कि तिरुपति बिल्डकॉन के मालिक पदम सिंघानिया है और उमरिया जिला बनने से पहले उन्होंने एसईसीएल में उमरिया, नौरोजाबाद और कई जगह बिल्डिंग वर्क्स का काम किया था, जिसका बिल बना और एसईसीएल ने मना कर दिया कि हम पैसा नही देंगे, तब तिरुपति कंस्ट्रक्शन कंपनी आर्बिटेशन में गई, कई लाख रुपये का मामला था, तब वहां एसईसीएल ने विरोध किया और कहा कि हम पैसा नही देंगे, इस पर ट्रिब्यूनल ने तिरुपति कंस्ट्रक्शन कंपनी के पक्ष में फैसला दिया, तब एसईसीएल उस आदेश के खिलाफ जिला न्यायालय शहडोल गई, जहां जिला न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के फैसले को यथावत रखा, उसके बाद एसईसीएल जिला न्यायालय के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट गई, तब वहां भी आर्बिटेशन और जिला न्यायालय के फैसले को मान्य करते हुए एसईसीएल को पैसा देने का निर्देश दी। जब हाई कोर्ट ने आदेश दिया तब तक तिरुपति कंस्ट्रक्शन कंपनी को 3 करोड़ 40 लाख और कुछ पैसे देने की देनदारियां थीं, जब हमने यहां इकरार प्रस्तुत किया और उनके वकील भी उपस्थित हुए और पैसा जमा करने का समय मांगे लेकिन इसी दौरान एसईसीएल पैसा न देने का सोच कर सर्वोच्च न्यायालय चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि आर्बिटेशन, जिला न्यायालय और हाई कोर्ट ने जो फैसला किया है वह न्यायसंगत है उस पर हस्तक्षेप नही किया जा सकता है और याचिका खारिज हो गई, उसके उपरांत हमारे द्वारा जीएम आफिस, भवन, काम्प्लेक्स, गाड़ियां हैं जो करीब 3 करोड़ 40 लाख रुपए की होती हैं उनको हम सभी को कुर्क करने के लिए प्रधान न्यायाधीश महोदय को आवेदन दिए और कल दिनांक को कुर्क करवाने गए तो उनने लिखित में आवेदन दिया है कि हम जल्द से जल्द पैसा देंगे, और यदि नही देते हैं तो 3 करोड़ 40 लाख रुपये का ब्याज सहित वसूलने का फिर आवेदन लगाएंगे।
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(Udaipur Kiran) / सुरेन्द्र त्रिपाठी