Jammu & Kashmir

लद्दाख में डोमिसाइल नीति पर विवाद-जम्यांग नामग्याल

लद्दाख में डोमिसाइल नीति पर विवाद-जम्यांग नामग्याल

लद्दाख , 17 अप्रैल (Udaipur Kiran) । लद्दाख से पूर्व सांसद जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल ने हाल ही में एक विवादास्पद बयान देकर डोमिसाइल नीति को लेकर बहस को फिर से हवा दे दी है। उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने एपीइएक्स कमेटी-के डीए के समक्ष 1954 को डोमिसाइल के लिए पात्रता की कट-ऑफ तिथि के रूप में प्रस्तावित किया था। नामग्याल ने दावा किया कि इस पर केंद्रीय गृह मंत्री की मौखिक सहमति मिल गई थी, लेकिन अंततः इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया।

नामग्याल ने कहा मैंने सुझाव दिया था कि जो लोग 1954 से लद्दाख में रह रहे हैं उन्हें डोमिसाइल का पात्र माना जाए। मैंने गृह मंत्री को इस विषय पर सहमत कर लिया था लेकिन दुर्भाग्यवश प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।

इसके जवाब में एपीईएक्स – केडीए के वरिष्ठ नेता त्सेरिंग दोरजे लाकरूक ने 1954 के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा हम अपने माँग में स्पष्ट हैं। डोमिसाइल के लिए पात्रता की कट-ऑफ तिथि 1989 होनी चाहिए 1954 नहीं। अगर कभी 1954 विचार के लिए लाया गया था तो आज 1989 को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।

एपीएक्स – केडीए का हमेशा से यह कहना रहा है कि 1989 एक अधिक उपयुक्त कट-ऑफ वर्ष है जो स्वतंत्रता के बाद और बड़ी जनसंख्या की आवाजाही से पहले के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य के अनुरूप है।

यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षण देने और स्वशासन सुनिश्चित करने की माँग ज़ोर पकड़ रही है। केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया इस दिशा में लद्दाख की प्रशासनिक और राजनीतिक दिशा को तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।

(Udaipur Kiran) / रमेश गुप्ता

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लद्दाख में डोमिसाइल नीति पर विवाद-जम्यांग नामग्याल

लद्दाख में डोमिसाइल नीति पर विवाद-जम्यांग नामग्याल

लद्दाख , 17 अप्रैल (Udaipur Kiran) । लद्दाख से पूर्व सांसद जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल ने हाल ही में एक विवादास्पद बयान देकर डोमिसाइल नीति को लेकर बहस को फिर से हवा दे दी है। उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने एपीइएक्स कमेटी-के डीए के समक्ष 1954 को डोमिसाइल के लिए पात्रता की कट-ऑफ तिथि के रूप में प्रस्तावित किया था। नामग्याल ने दावा किया कि इस पर केंद्रीय गृह मंत्री की मौखिक सहमति मिल गई थी, लेकिन अंततः इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया।

नामग्याल ने कहा मैंने सुझाव दिया था कि जो लोग 1954 से लद्दाख में रह रहे हैं उन्हें डोमिसाइल का पात्र माना जाए। मैंने गृह मंत्री को इस विषय पर सहमत कर लिया था लेकिन दुर्भाग्यवश प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।

इसके जवाब में एपीईएक्स – केडीए के वरिष्ठ नेता त्सेरिंग दोरजे लाकरूक ने 1954 के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा हम अपने माँग में स्पष्ट हैं। डोमिसाइल के लिए पात्रता की कट-ऑफ तिथि 1989 होनी चाहिए 1954 नहीं। अगर कभी 1954 विचार के लिए लाया गया था तो आज 1989 को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।

एपीएक्स – केडीए का हमेशा से यह कहना रहा है कि 1989 एक अधिक उपयुक्त कट-ऑफ वर्ष है जो स्वतंत्रता के बाद और बड़ी जनसंख्या की आवाजाही से पहले के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य के अनुरूप है।

यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षण देने और स्वशासन सुनिश्चित करने की माँग ज़ोर पकड़ रही है। केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया इस दिशा में लद्दाख की प्रशासनिक और राजनीतिक दिशा को तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।

(Udaipur Kiran) / रमेश गुप्ता

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