Jammu & Kashmir

संविधान हत्या दिवस तत्कालीन कांग्रेस सरकार की लोकतंत्र की सुनियोजित हत्या के लिए श्रद्धांजलि होगी

संविधान हत्या दिवस तत्कालीन कांग्रेस सरकार की लोकतंत्र की सुनियोजित हत्या के लिए श्रद्धांजलि होगी

जम्मू, 13 जुलाई (Udaipur Kiran) । संविधान हत्या दिवस इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा लोकतंत्र और संविधान की सुनियोजित हत्या के लिए एक आदर्श श्रद्धांजलि होगी। यह अत्याचारों के सभी पीड़ितों और कांग्रेस सरकार की तानाशाही के खिलाफ लड़ने वालों के प्रति सम्मान का प्रतीक भी होगा। यह बात वरिष्ठ भाजपा नेता चंद्र मोहन शर्मा ने कही। शनिवार को जम्मू के त्रिकुटा नगर स्थित पार्टी मुख्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में वह बोल रहे थे। उनके साथ शमिंदर कुमार, सतपाल राठौर और राजिंदर कुमार गुप्ता भी मौजूद थे।

मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए चंद्र मोहन शर्मा ने हर साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने के भारत सरकार के फैसले की सराहना की। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह ने एक बयान में कहा कि इस दिन को मनाकर देश उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि देगा जिन्हें बिना किसी गलती के जेल में डाल दिया गया। यह उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि होगी जिन्होंने अत्याचार सहे और जिनकी जबरन नसबंदी की गई। घरों और बस्तियों को अवैध रूप से ध्वस्त किया गया और सरकारी कर्मचारियों को जबरन नौकरी से निकाला गया। यह वह दिन था जब वर्ष 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल की घोषणा की थी।

भारत के संविधान में 42वां संशोधन करके न्यायपालिका को कमजोर कर दिया गया था। उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों को हटा दिया गया था। सेना के शीर्ष अधिकारियों को भी हटा दिया गया था। लोकतांत्रिक मंचों का कार्यकाल 5 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया गया था। शर्मा ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने केंद्र में सत्ता की कुर्सी बचाने और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के कारण इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाने से बचाने के लिए अनावश्यक आपातकाल लगाकर ऐतिहासिक पाप किया था।

शेख अब्दुल्ला द्वारा शासित जम्मू-कश्मीर राज्य सहित विभिन्न राज्यों में कुल 12 लाख राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मीसा और डीआईआर के तहत जेल में डाल दिया गया था। यह दुःस्वप्न 21 मार्च 1977 तक जारी रहा जब इंदिरा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार आम चुनाव हार गई और जनता पार्टी ने विजयी होने के बाद केंद्र में सरकार बनाई और उसके बाद सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन लोगों को लोकतंत्र सेनानी घोषित किया था और सरकार को निर्देश दिया था कि उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के समान दर्जा दिया जाए।

(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा / बलवान सिंह

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