
प्रयागराज, 20 मार्च (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि वैध कानूनी प्रक्रिया के तहत दोषी ठहराए बगैर किसी नागरिक के जीवन के मूल अधिकार को छीना नहीं जा सकता। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियुक्त को जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है। जब तक किसी को अपराध का दोषी नहीं ठहरा दिया जाता तब तक उसके निर्दोष होने की अवधारणा बनी रहेगी।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के सतेंद्र कुमार अंतिल व मनीष सिसोदिया केस का हवाला देते हुए कहा कि अपराध में मिलने वाले दंड की अनदेखी कर अभियुक्त की जमानत नहीं रोके रखा जा सकता। कोर्ट ने कहा ऐसी कोई परिस्थिति नहीं बताई गई जिसके आधार पर याची को जमानत देने से मना किया जा सके और नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपित की सशर्त जमानत मंजूर कर ली है।
यह आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने थाना तितवी, मुजफ्फरनगर के सौरभ की जमानत अर्जी पर दिया है। अधिवक्ता का कहना था कि याची को झूठा फंसाया गया है। वह निर्दोष है। एफआईआर दर्ज करने में तीन दिन की देरी का कोई स्पष्टीकरण नहीं है। पीड़िता ने स्वयं के बयान से अभियोजन कहानी का समर्थन नहीं किया है। याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह 22 सितम्बर 24 से जेल में बंद हैं। कोर्ट ने कहा कि जमानत देने का उद्देश्य ट्रायल के समय अभियुक्त को हाजिर रखना है। कोर्ट ने गुण-दोष पर विचार किए बगैर याची को जमानत पाने का हकदार माना।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
