जबलपुर, 24 जुलाई (Udaipur Kiran) । जिला अस्पताल जबलपुर में पदस्थ रहे दो पूर्व सीएमएचओ डॉक्टर मनीष मिश्रा एवं डॉक्टर रत्नेश कुररिया के साथ सुखसागर हॉस्पिटल के संचालक कौस्तुभ वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत न्यायालय में परिवाद लगाया गया जो कि स्वीकृत किया जा चुका है। यह परिवाद विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की अदालत में आवेदक एडवोकेट धीरज कुकरेजा एवं एडवोकेट स्वप्निल सराफ द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
दरअसल, आवेदकों कि तरफ से एडवोकेट मोहम्मद वासिफ खान ने बताया कि दोनों सीएमएचओ ने सुखसागर अस्पताल के संचालक से साठगांठ कर उनके अस्पताल के 250 से 300 बिस्तरों को अधिग्रहीत करने हेतु अनुज्ञप्ति पत्र जारी किया था जो की पूर्ण रूप से अनुचित था। क्योंकि जबलपुर में अन्य बहुत सारे हॉस्पिटल हैं इसके बावजूद पूर्व सीएमएचओ डॉक्टर मनीष मिश्रा द्वारा मात्र एक अस्पताल हेतु अनुज्ञप्ति जारी की गई थी।
प्रस्तुत परिवाद में बताया है कि 28 दिसंबर 2020 को कोविड केयर सेंटर बनाए गए सुखसागर अस्पताल द्वारा भुगतान के लिए 5 करोड़ 97 लाख 40 हजार रूपये का बिल प्रस्तुत किया गया था। जिसमें से 79 लाख 75हजार का भुगतान पूर्व सीएमएचओ डॉक्टर मनीष मिश्रा एवं डॉक्टर रत्नेश कुररिया के द्वारा किया जा चुका है एवं शेष राशि का भुगतान प्रति बेड के हिसाब से कुल संख्या को लेकर किया जाना बाकी था। जिसके लिए कलेक्टर कार्यालय द्वारा 15 अप्रैल 2021 को सुखसागर अस्पताल के अतिरिक्त बचे भुगतान के लिए एक कमेटी का गठन किया गया, इस कमेटी में तत्कालीन मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. मनीष मिश्रा वर्तमान मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर रत्नेश कुररिया जो मनोरोग विशेषज्ञ हैं एवं डिप्टी कलेक्टर मेघा पवार को नियुक्त किया गया ।
इस कमेटी के गठन के दौरान पूर्व सीएमएचओ ने अपने अभिमत में सुखसागर अस्पताल को राशि भुगतान करने हेतु सहमति जारी की थी लेकिन उक्त सहमति के बाद डिप्टी कलेक्टर मेघा पवार ने अपने अभीमत में यह कहा था कि मजिस्ट्रेट अधिकार एवं प्राइवेट हॉस्पिटल में मरीजों को उपचार के लिए रखने के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल का अधिग्रहण एमओयु किया जाना पूर्व सीएमएचओ डॉक्टर मनीष मिश्रा व डॉक्टर रत्नेश कुरारिया के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसके बावजूद इन दोनों सीएमएचओ ने अपने पद का दुरुपयोग किया है। इसके साथ ही डिप्टी कलेक्टर मेघा पवार ने अपनी आर्डर शीट में यह भी अंकित किया था की एमओयु के अवलोकन में पाया गया कि इसमें केवल प्राइवेट हॉस्पिटल के संचालक सुखसागर हॉस्पिटल के संचालक के हस्ताक्षर हैं एवं पूर्व सीएमएचओ डॉक्टर मनीष मिश्रा के हस्ताक्षर नहीं है। ऐसी स्थिति में एमओयू किया जाना प्रमाणित नहीं होता। इसलिए सुख सागर अस्पताल द्वारा प्रस्तुत देयक में वित्तीय नियमों के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है जो की अनुशंसित करने योग्य नहीं है। इसके अलावा एमओयु आपदा प्रबंधन समिति द्वारा कराया जाना अति आवश्यक है जो कि नहीं कराया गया।
परिवाद में आवेदक ने आरोप लगाया है कि दोनों सीएमएचओ डॉक्टर मनीष मिश्रा एवं डॉक्टर रत्नेश कोरिया के द्वारा सुख सागर अस्पताल के पक्ष में अपना अभिमत देकर वित्तीय अनियमितता की गई है। इस प्रकरण को लेकर न्यायालय के समक्ष एक परिवाद धारा 223 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के विरुद्ध धारा 49,61,111(1),111(2)(ख),111(3) ,भारतीय न्याय संहिता 2023 एवं 7(ग),7(क),12,15,13(1)(बी) एवं 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्रस्तुत किया गया जिसे न्यायालय ने ग्रहण किया प्रकरण की अगली सुनवाई 20अगस्त 2024 को नियत की गई है ।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक / डॉ. मयंक चतुर्वेदी