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यूपी में सीएमओ, डॉक्टर्स अक्सर गर्भपात मामलों में प्रक्रिया से अवगत नहीं होते : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट

-हाईकोर्ट ने यूपी के स्वास्थ्य सचिव को एसओपी जारी करने का निर्देश दिया

-पीड़िता व उसके परिवार के सदस्यों का नाम रिकार्ड से हटाने का निर्देश

प्रयागराज, 27 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि उत्तर प्रदेश राज्य में मुख्य चिकित्सा अधिकारी और डॉक्टर महिला की जांच करते समय टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से अवगत नहीं होते हैं। इस कारण हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण को इसके लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एस ओ पी) जारी करने का निर्देश दिया है, जिसका पालन सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और उनके द्वारा गठित बोर्डों द्वारा किया जाना है।

याचिकाकर्ता नाबालिग पीड़िता और उसके परिवार ने प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने एक मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया, जिसने अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में कहा गया कि गर्भ लगभग 29 सप्ताह का है। इस अवस्था में गर्भपात तथा गर्भ को पूर्ण अवधि तक ले जाने से पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा। पीड़िता और उसके परिवार के सदस्य चिकित्सीय गर्भपात चाहते थे इसलिए न्यायालय ने रिट याचिका स्वीकार कर ली।

जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की पीठ ने कहा, “हमारे सामने आए अनेक मामलों में जिनमें याचिकाकर्ता ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के लिए प्रार्थना की थी। हमने पाया है कि जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों सहित मेडिकल कॉलेजों और पीड़िता की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त डॉक्टरों को पीड़िता की जांच करते समय और उसके बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में उचित जानकारी नहीं है।”

न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम, 1971 में निर्धारित की गई। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स 2003 और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रेगुलेशन 2003 के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों में भी इसका उल्लेख किया गया। “पूरी प्रक्रिया में शामिल संवेदनशीलता को ध्यान में रखना होगा। यह गम्भीर चिंता का विषय है कि कुछ जिलों के डॉक्टर उपरोक्त विधानों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित प्रक्रिया से बिल्कुल भी परिचित नहीं हैं।”

तदनुसार न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण को सभी सीएमओ को एसओपी जारी करने का निर्देश दिया। टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों का नाम केस रिकॉर्ड से हटा दिया जाए। यह भी निर्देश दिया गया कि गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति से संबंधित ऐसे सभी मामलों में पीड़िता या उसके परिवार के सदस्यों का नाम उल्लेखित नहीं किया जाना चाहिए।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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