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सिविल सोसाइटी ने उठाया दिल्ली की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्न, कहा- राज्य सरकार की जवाबदेही तय हो

नागरिक समाज के लोग पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए

नई दिल्ली, 23 जनवरी (Udaipur Kiran) । सिविल सोसाइटी ने गुरुवार को पिछले 10 वर्षों में दिल्ली की बिगड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था का मुद्दा उठाया और राज्य सरकार की जवाबदेही तय करने की मांग की। साथ ही मतदाताओं को शत् प्रतिशत मतदान करने के लिए जागरूक किया।

स्वतंत्र जन आवाज एनजीओ ने दिल्ली की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक महत्वपूर्ण प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी ए.के. मल्होत्रा, सेवानिवृत्त जस्टिस एस. एन. ढींगरा, और सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर अश्विनी राय ने अपने विचार प्रस्तुत किए।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सेवानिवृत्त जस्टिस एस. एन. ढींगरा ने कहा कि मोहल्ला क्लिनिक की वास्तविकता क्या है, यह जानना हमारे लिए अहम है। दिल्ली जहाँ की आबादी 2.5 करोड़ है, और जहाँ 1.5 करोड़ की आबादी इन्सुरेंस नहीं करा सकती। ऐसे मे कोई बीमार हो जाए तो पूरा घर चिंता मे लग जाता है। 40 रुपये पर पेशेंट के हिसाब से कौन सा डॉक्टर बैठेगा। यह सोचने वाली बात है।

डॉ. अश्विनी राय ने कहा कि दिल्ली मे स्वास्थ्य सुविधायें 2007 से भी कम है, इंफ्रास्ट्रक्चर कमजोर है। मोहल्ला क्लिनिक मात्र टेम्परेरी व्यवस्था पर चलाये गये।

इस अवसर पर सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी ए. के. मल्होत्रा ने कहा कि मोहल्ला क्लिनिक एक विज़न नहीं फ्रॉड है, जहाँ 1000 मोहल्ला क्लीनिक की बात की गयी थी, वहाँ 500 भी नहीं पूरे हुए।

स्वतंत्र जन आवाज एनजीओ द्वारा बताया गया कि स्वस्थ्य जीवन नागरिक का मौलिक अधिकार होता है लेकिन बढ़ता प्रदूषण और बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था ने दिल्ली के नागरिकों से उनका यह अधिकार भी छीन लिया है और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के पास इसको लेकर कोई भी ठोस योजना नहीं है। दिल्ली सरकार की मोहल्ला क्लीनिक अब अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। वर्तमान दिल्ली सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लगभग 8700 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है लेकिन इसके बावजूद मोहल्ला क्लीनिक में ज़रूरी जेनेरिक दवाइयों और एंटीबायोटिक्स की कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

महिलाओं के लिए ये क्लीनिक पूरी तरह से अनुकूल नहीं माने जा सकते, क्योंकि यहां महिला रोगियों और स्वास्थ्य सेवाओं की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने में कमी देखी जा रही है। यदि मोहल्ला क्लीनिक को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का मॉडल माना जाता है तो 2024 में 2023 की तुलना में 30 प्रतिशत फुटफॉल में गिरावट क्यों दर्ज की गई? यह न केवल सरकारी दावों पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार की आवश्यकता है। जनता के विश्वास को बनाए रखने और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और प्रभावी बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हाल ही में कई मोहल्ला क्लीनिक बंद या बदहाल स्थिति में पाए गए। इन क्लीनिकों में घटिया दवाओं की आपूर्ति और फर्जी लैब टेस्ट से संबंधित घटनाएं सामने आई हैं। इसके अलावा मेडिकल उपकरणों और दवाओं की कमी, साथ ही डॉक्टरों और स्टाफ की अनुपस्थिति जैसी समस्याएं भी देखने को मिली हैं। उक्त विषय को संज्ञान में लेते हुए गृह मंत्रालय (एमएचए) ने पिछले महीने उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना की सिफारिश पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच शुरू करवाई है।

कान्फ्रेंस में मतदाताओं को शत् प्रतिशत मतदान करने के लिए जागरूक किया गया और उनसे अपील की गई कि वे उन उम्मीदवारों और पार्टियों का समर्थन करें जो स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए ठोस योजनाएं प्रस्तुत करते हैं और नागरिक को स्वस्थ जीवन उपलब्ध कराने एवं प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हों।

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(Udaipur Kiran) / अनूप शर्मा

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