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झांसी, 27 जुलाई (Udaipur Kiran) । सिनेमा को मनोरंजन का विशुद्ध माध्यम नहीं माना जा सकता क्योंकि सिनेमा के साथ देश का बहुसंख्यक समाज जुड़ता है। सिनेमा अगर समाज से अर्थ का निर्माण करता है तो समाज के उन्नयन की जिम्मेदारी भी उसी पर है। इसीलिए सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं बल्कि जनसंवाद का भी माध्यम भी बनना चाहिए।
उक्त विचार केंद्रीय राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रो संजीव भानावत ने व्यक्त किये। वे बचपन एक्सप्रेस लखनऊ, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ एवं राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘सिनेमा, समाज और स्त्री अपराध बोध’ विषय पर ऑनलाइन आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा ने स्त्री विमर्श के अनेकों चरणों को पार किया है। आज सिनेमा स्त्री की रूढ़िवादी छवि को तोड़कर उसकी सशक्त तस्वीर बनकर उभरा है। आज की सिनेमाई स्त्री अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम है।
(Udaipur Kiran) / महेश पटैरिया / शरद चंद्र बाजपेयी / राजेश
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