
काठमांडू, 29 अप्रैल (Udaipur Kiran) । पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जहां अमेरिका और रूस जैसी विश्व शक्तियों ने भारत के पक्ष में होने का संदेश दिया है, वहीं चीन ने अपने तेवर बदलते हुए पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाया है। पाकिस्तान द्वारा पहलगाम घटना की जांच का विषय उठाने के बाद चीन ने अपना समर्थन दिया है। इतना ही नहीं चीन ने इस विषय पर भारत के पड़ोसी देश में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है।
पहलगाम हमले की कड़ी निंदा करते हुए आतंकवाद के खिलाफ भारत के हर कदम का समर्थन करने की घोषणा करने वाले नेपाल पर चीन ने दबाव देना शुरू किया है। नेपाल में चीन के राजदूत की सक्रियता सिर्फ सरकार ही नहीं राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात इसी ओर संकेत कर रहा है। पिछले दो दिनों में नेपाल में चीन के राजदूत छन सोंग ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेरबहादुर देउवा, माओवादी अध्यक्ष पुष्प कमल दहाल प्रचण्ड और विदेश मंत्री डॉ आरजू राणा से गुपचुप मुलाकात की है।
हालांकि पहलगाम घटना के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से टेलीफोन संवाद कर अपनी संवेदना प्रकट करते हुए घटना की कड़ी निंदा की थी। नेपाल सरकार के तरफ से भी बयान जारी करते हुए पहलगाम आतंकी घटना की निंदा करते हुए आतंकवाद को किसी बहाने समर्थन नहीं किए जाने की बात स्पष्ट की थी।
लेकिन नेपाल में चीन की सक्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नेपाल सरकार के बयान के ठीक विपरीत संसद में सत्तारूढ़ दल के नेता अलग ही बयान दे रहे हैं। पहलगाम घटना पर अपनी पार्टी का पक्ष रखते हुए नेपाली कांग्रेस के प्रमुख सचेतक श्याम घिमिरे ने कहा कि उनकी पार्टी दक्षिण एशिया में बढ़ रहे तनाव और संभावित युद्ध से चिंतित है। नेपाली कांग्रेस यह मानती है कि सभी द्वंद का समाधान वार्ता से संभव है।
इतना ही नहीं घिमिरे ने यह भी स्पष्ट किया कि नेपाल किसी भी देश के पक्ष में खड़ा नहीं रहेगा और ना ही युद्ध जैसी स्थिति में वो किसी सैन्य गठबंधन का हिस्सा बनेगा। नेपाली कांग्रेस पार्टी के तरफ से संसद में इस तरह का बयान भारत के लिए चिंता का विषय है। नेपाल की कम्यूनिष्ट पार्टी के साथ सत्ता गठबंधन में रहे डेमोक्रेटिक विचारधारा वाली पार्टी का यह बयान चिंताजनक है। माना जा रहा है कि चीन के दबाव में ही कांग्रेस का इस तरह का बयान आया है।
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(Udaipur Kiran) / पंकज दास
