छतरपुर , 27 सितंबर (Udaipur Kiran) । महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालयए छतरपुर में भारतीय ज्ञान परंपरा में अरण्य संस्कृति विषय पर आयोजित दो दिवसीय इंटरनेशनल सेमीनार के दूसरे दिन शुक्रवार को तृतीय तथा चतुर्थ सत्र सहित समापन सत्र संपन्न हुआ। कुलगुरु प्रो शुभा तिवारी के निर्देशन में आयोजित इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में देश के अनेक विद्वानों ने सार्थक व्याख्यान दिए।
मीडिया संयोजक डा एसपी जैन ने बताया कि इस सेमिनार के दूसरे दिन 27 सितंबर शुक्रवार को प्रारंभ में सरस्वती मां का पूजन अर्चन एवं अतिथि वक्ताओं का भावभीना स्वागत किया गया। तृतीय तकनीकी सत्र में प्रथम आमंत्रित वक्ता डॉ अनंतेश्वर मिश्र ने कई वैदिक मंत्र के उच्चारण से अरण्य संस्कृति को समझाया । इस सत्र की द्वितीय वक्ता प्रो अमिता अर्जरिया ने अपने व्याख्यान में कहा कि यदि आपने प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग किया तो यह आपके लिए वरदान है परंतु यदि आपने अनुचित तरीके से उपयोग किया तो यही प्रकृति आपको नष्ट करने में भी सक्षम है । अगले वक्त के रूप में डॉक्टर महेश कुमार द्विवेदी ने अपने विचार अरण्य संस्कृति पर रखें और उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा ज्ञान दान और दूसरों की रक्षा के लिए है । हम किसी भी आधुनिक विषय को पढ़ें परंतु भारतीयता की अवधारणा को ना भूले , उन्होंने कहा स्वाहा का अर्थ है अपने स्वार्थ को त्याग कर राष्ट्रीयता के लिए कर्म करना। इस सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ राम पाल शुक्ला जी ने कहा जो मन में है वही वचन में हो वही कर्म में हो यही भारतीय संस्कार है । वेशभूषा मानसिकता बनाता है । वनस्पतिशास्त्र जीवन का अभिन्न अंग है स इस सत्र का आभार डॉक्टर गायत्री ने व्यक्त किया । तृतीय तकनीकी सत्र का सफल संचालन श्रीमती पूजा तिवारी ने किया।
इस सत्र में प्रोफेसर जेपी शाक्य ने अपने उद्बोधन में कहा की हमारा पूरा चिंतन समाज उपयोगी होना चाहिए । हमें नैतिकता से ऊपर उठकर अध्यात्म की ओर चलना होगा । संत, संहिता और संस्कृति को कभी रुकना नहीं चाहिए। डॉ रामपाल शुक्ला ने कहां की अरण्य संस्कृति में ऋषि परंपरा और नैतिकता को अत्यंत महत्व दिया गया है । मनुष्य ने अपने स्वार्थ बस प्रकृति को नष्ट करने की अघोषित घोषणा कर दी है । अरण्य संस्कृति से ही दान ज्ञान बलिदान और नैतिकता का उद्गम हुआ है ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में रामपाल शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारी प्राचीन संस्कृति मानव की संस्कृति थी दानव की संस्कृति नहीं। डॉक्टर तुलसीदास परोहा ने कहा कि जहां हमारे भारत का ज्ञान विज्ञान उत्पन्न हुआ है पुष्पित एवं पल्लवित हुआ है वह स्थान अरण्य है । इस सत्र के अध्यक्ष उद्बोधन में कुलगुरु विजय कुमार सीजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की संकल्पना तीन बिंदुओं की खोज पर आधारित है ज्ञान प्रज्ञा एवं सत्य , आज सारा विश्व भारतीय ज्ञान परंपरा के रास्ते पर चलने की ओर अग्रसर है ।
(Udaipur Kiran) / सौरव भटनागर