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तीन आपराधिक कानूनों में बदलाव औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने वाली महत्वपूर्ण घटनाः उपराष्ट्रपति 

किसी भी देश और सभ्यता का आंकलन उसकी न्याय व्यवस्था से, युवा वकीलों में निवेश ज़रूरी : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

जयपुर, 27 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि दंड विधान से न्याय विधान की यात्रा औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति का मार्ग है। लंबे समय की मांग के बाद अंग्रेजों द्वारा बनाए गए तीन आपराधिक कानूनों को निरस्त किया गया है जोकि नए वकीलों के लिए एक वरदान हैं। उन्हाेंने इस परिवर्तन काे औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना बताया। भारतीय न्याय संहिता सहित तीन कानूनों के पारित होते समय राज्यसभा के सभापति के रूप में स्वयं की उपस्थिति के अनुभवों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक बहुत शक्तिशाली समिति ने इन कानूनों के प्रत्येक प्रावधान पर विचार किया। उन्होंने सरकार ने इस बदलाव में गहराई से जांच की है तथा तकनीक की मदद से प्रत्येक प्रावधान की पृष्ठभूमि को बारीकी से देखा गया है।

उपराष्ट्रपति धनखड़ रविवार काे जयपुर में एआईआर पुस्तकालय के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्हाेंने कहा कि उद्योगपति एवं कॉर्पोरेट समूहों को अन्य संस्थानों को प्रदान की जाने वाली सहायता की तर्ज पर न्यायपालिका के कार्यान्वयन में भी सहायता प्रदान करनी चाहिए। कॉर्पोरेट्स के पास सीएसआर फंड है और उनको लोकल अदालतों में इन्वेस्ट करना चाहिए। न्यायपालिका हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसमें सबार्डिनेट (अधीनस्थ) शब्द की कोई जगह नहीं है। कोई भी न्यायालय सबोर्डिनेट नहीं, इसमें बदलाव होना चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जब मजिस्ट्रेट या जिला जज फैसला लिखता है ताे उनके मन में एक शंका रहती है कि मेरे फैसले पर क्या टिप्पणी होगी। उन्होंने कहा कि हम सभी को इनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए।

देश में ज़िला न्यायालयों, वहां कार्यरत वकीलों एवं आम आदमी की न्याय प्राप्ति पर उन्होंने कहा कि यदि हमें न्याय प्राप्ति को सस्ता और सुलभ बनाना है तो हमें लोगों को गुणवत्तापूर्ण न्याय देना होगा। आइए, हम अपने जिला न्यायालयों, हमारे मजिस्ट्रेट, हमारे जिला न्यायाधीशों, हमारे युवा वकीलों पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित करें, जिला न्यायालय में वकील बहुत ही चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं। कोविड काल पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तक के कुछ वकीलों ने वकालत छोड़ दी। ऐसे पेशे को कोई छोड़ता है तो वह आप और हम पर बहुत बड़ी टिप्पणी है।

कार्यक्रम में राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मणींद्र मोहन श्रीवास्तव, हाई कोर्ट के जस्टिस इंद्रजीत सिंह, जयपुर बार असोसिएशन के अध्यक्ष, एडवोकेट पवन शर्मा, जयपुर बार असोसिएशन के महासचिव एडवोके राजकुमार शर्मा, जयपुर बार काउंसिल के अध्यक्ष एडवोकेट भुवनेश शर्मा, राजस्थान हाईकोर्ट बार असोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट प्रह्लाद शर्मा एवं अन्य गणमान्य अतिथि मौजूद रहे।

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(Udaipur Kiran) / राजीव

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