
-अंत्योदय-समावेशी विकास हेतु रणनीतियां विषय पर राष्ट्र स्तरीय संगोष्ठी में कही यह बात
गुरुग्राम, 25 मई (Udaipur Kiran) । पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अंत्योदय की अवधारणा महज आर्थिक न्याय तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक समावेशन, तकनीकी सशक्तिकरण और प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण की एक समग्र रणनीति है। यह बात प्रो. दलीप सिंह ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के गुरुग्राम स्थित प्रोफेशनल एंड एलाइड स्टडीज केंद्र में अंत्योदय-समावेशी विकास हेतु रणनीतियां विषय पर राष्ट्र स्तरीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता कही।
उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि यदि संसाधनों की वास्तविक पहुंच अंतिम व्यक्ति तक सुनिश्चित करनी है तो ग्राम पंचायतों, नगर निकायों तथा अन्य स्थानीय स्वशासी संस्थाओं को वित्तीय, प्रशासनिक एवं तकनीकी रूप से सशक्त बनाना अपरिहार्य है। उन्होंने ग्रामीण भारत में महिला स्वयं सहायता समूहों की कार्यप्रणाली और सफलता को नीतिगत हस्तक्षेप के प्रभावी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।
संस्थान के निदेशक प्रो. प्रदीप के. अहलावत ने कहा कि वास्तविक समावेशी विकास तभी संभव है, जब हर व्यक्ति को समान अवसर और न्याय मिले। उन्होंने सबका साथ, सबका विकास और सर्वोदय के माध्यम से अंत्योदय की भावना को दोहराते हुए यह स्पष्ट किया कि जब तक समाज के सबसे कमजोर और उपेक्षित वर्ग को शिक्षा, अधिकार और अवसर नहीं मिलता, तब तक सतत विकास की संकल्पना अधूरी रहेगी। शिक्षक, शोधकर्ता और नीति निर्माता होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है कि हम वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण से ऐसी रणनीतियां विकसित करें, जो अंत्योदय की भावना को साकार कर सकें। प्रो. अहलावत ने सभी शोधार्थियों से सहयोग और नवाचार के माध्यम से सबका साथ, सबका विकास की भावना को आत्मसात कर एक न्यायसंगत और सतत विकास सुनिश्चित का अनुरोध किया। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. कविता ने बताया कि संगोष्ठी में देशभर से आये 155 शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, उद्योग विशेषज्ञों एवं विद्यार्थियों ने 14 तकनीकी सत्रों में 125 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये। संयोजिका डॉ. प्रतिभा भारद्वाज ने अपने संबोधन में कहा कि अंत्योदय की भावना तभी साकार हो सकती है जब नीति निर्माण से लेकर कार्यान्वयन तक सभी स्तरों पर समावेशिता, समानता और संवेदनशीलता को प्राथमिकता दी जाए।
(Udaipur Kiran)
