
कोलकाता, 26 मई (Udaipur Kiran) । कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी कर्मचारी को दी जाने वाली पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों में एक दिन की भी देरी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह उनके लंबे और सतत सेवा के बदले प्राप्त अधिकार हैं।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति गौरांग कांत ने की है। उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को इन लाभों में देरी के कारण काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उनकी आजीविका इन्हीं पर निर्भर होती है।
यह मामला पश्चिम बंगाल के एक नगर निकाय की ग्रुप डी की महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका से संबंधित था। याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने 30 नवम्बर 2023 को सेवा से अवकाश लिया था और उनकी अंतिम मासिक वेतन लगभग 40 हजार थी। हालांकि, उनके पदनाम में गड़बड़ियों और भिन्नताओं के कारण अभी तक उन्हें पेंशन की मंजूरी नहीं मिली है।
न्यायमूर्ति कांत ने अपने आदेश में इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस डिजिटल प्रणाली को प्रशासनिक दक्षता और पारदर्शिता के लिए लागू किया गया था, वही अब संक्रमणकालीन अक्षमताओं के कारण श्रेणी-चार कर्मचारियों की पेंशन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर रही है।
अदालत ने दोटूक कहा कि पेंशन कोई अनुग्रह नहीं, बल्कि कर्मचारियों का वैधानिक अधिकार है जो उनकी लंबी और समर्पित सेवा के फलस्वरूप उन्हें प्राप्त होता है।
आदेश में आगे कहा गया कि पेंशन वितरण में किसी भी प्रकार की अनावश्यक देरी न्याय और समानता के सिद्धांतों के विरुद्ध है और इसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
