कोलकाता, 17 दिसंबर (Udaipur Kiran) । कलकत्ता हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक आदिवासी संगठन को आरक्षण की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजमार्गों और रेलवे ट्रैक को अवरुद्ध करने से रोक दिया। अदालत ने यह आदेश उस संगठन के प्रस्तावित आंदोलन को ध्यान में रखते हुए दिया, जो 20 दिसंबर सुबह छह बजे से अवरोध शुरू करने की योजना बना रहा था।
मुख्य न्यायाधीश टी. एस. शिवगणनम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति हीरनमय भट्टाचार्य भी शामिल थे, ने निर्देश दिया कि संगठन के सदस्य राष्ट्रीय राजमार्गों और रेलवे ट्रैक पर किसी भी प्रकार का अवरोध न करें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आदेश का उल्लंघन होता है, तो राज्य सरकार संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
इस मामले में दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि भारत जकात माझी परगना महल नामक एक गैर-पंजीकृत संगठन ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन की योजना बनाई थी। उनकी प्रमुख मांगों में संताली माध्यम के लिए शिक्षा बोर्ड की स्थापना और संगठन को अनुसूचित जनजाति की आरक्षित श्रेणी में शामिल करना शामिल है।
प्रतिवादियों के वकील ने अदालत के समक्ष 30 अक्टूबर को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को सौंपे गए एक ज्ञापन की प्रति प्रस्तुत की। इस ज्ञापन में संगठन ने चेतावनी दी थी कि अगर उनकी मांगें 15 दिसंबर तक पूरी नहीं की गईं, तो वे हजारों आदिवासियों के साथ अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू करेंगे। उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को भी ज्ञापन सौंपकर 20 दिसंबर से राष्ट्रीय राजमार्ग 16 को अवरुद्ध करने की धमकी दी थी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसी मांगें मूल रूप से नीतिगत विषय हैं, विशेष रूप से किसी समुदाय को आरक्षित श्रेणी में शामिल करने के मामले में। अदालत ने यह भी कहा कि वह सरकार को किसी विशेष तरीके से नीति तैयार करने का निर्देश नहीं दे सकती।
खंडपीठ ने राज्य सरकार को सुझाव दिया कि इस मांग को गंभीरता से लिया जाए और यदि संभव हो तो संगठन के सदस्यों के साथ चर्चा की जाए, ताकि इस मुद्दे का समाधान निकाला जा सके।
यह मामला राज्य में राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है, और हाई कोर्ट के इस आदेश से स्थिति पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर