लखनऊ, 10 नवम्बर (Udaipur Kiran) ।
राजनीति में माना जाता है कि जब किसी दल के बात को काटने में ही दूसरा दल समय लगा दे
तो वह पिछड़ जाता है। इस समय भाजपा की यह चाल कामयाब होती दिख रही है। उप्र में पूरा
विपक्ष सिर्फ भाजपा का जवाब देने में ही समय लगा रहा है। ऐसा नहीं दिखा जब विपक्ष ने
कोई अपना नया मुद्दा छेड़ा हो। भाजपा भी यही चाहती है कि विपक्ष उसके पिच पर ही खेलता
रहे। भाजपा का नारा “कटेंगे तो बटेंगे” के मुद्दे पर विपक्ष में जितना अधिक उबाल आएगा,
भाजपा को उतना अधिक फायदा होगा।
पिछले लोकसभा चुनाव
में विपक्ष ने “संविधान खतरे में है” का एक मुद्दा उठाया। भाजपा उस पर जवाब देती रह
गयी। इसका असर उप्र के दलित वोटरों पर देखने को मिला और वे सपा की तरफ झुक गये। इससे
सपा उप्र में काफी आगे निकल गयी। पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा कोई ऐसा मुद्दा
नहीं उठा पायी, जिसको काटने में विपक्ष अपना समय गवाएं या वह बहस का मुद्दा बन पाये,
इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा था। वहीं 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पूरा
विपक्ष सिर्फ नरेन्द्र मोदी के ईर्द-गिर्द घुमता रहा। इसका फायदा भाजपा को देखने को
मिला।
राजनीतिक विश्लेषक
और वरिष्ठ पत्रकार हर्ष वर्धन त्रिपाठी का कहना है कि सिर्फ एक नारा, “एक रहेंगे, नेक
रहेंगे। बंटेंगे तो कटेंगे।” ने विपक्ष में बौखलाहट पैदा कर दी है। इसका कारण है कि
विपक्ष हमेशा बांटकर ही अपनी राजनीति की रोटियां सेकता रहा है। एक-एक जाति को लड़ाकर
उसमें दूसरे के प्रति नफरत पैदाकर विपक्ष अपनी राजनीति को चमकाता रहा है। बटेंगे तो
कटेंगे का नारा लोगों के दिमाग में घुस रहा है और इससे प्रभावित हैं। विपक्ष इसी कारण
बौखला गया है।
राजनीतिक विश्लेषक
राजीव रंजन सिंह का कहना है कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हुए अत्याचार हर व्यक्ति
ने देखा है। वहां हिंदुओं पर अत्याचार के बीच ही यह नारा लोगों को झकझोर कर रख दिया।
यही कारण है कि लोग इस नारे की हकीकत को खुद पर भी देख रहे हैं। इससे विपक्ष द्वारा
किये जा रहे काट को लोग अनसुना करते जा रहे हैं। इससे विपक्ष की बौखलाहट बढ़ रही है।
(Udaipur Kiran) / उपेन्द्र नाथ राय