Uttar Pradesh

धूप में झुलसते गोवंश, संकट में पनाह साबित हो रहें आश्रय स्थल

जासा-बघौरा गांव के गोवंश आश्रय स्थल में क्षमता से अधिक गोवंश।

जिगना के गोशालाओं में तपिश, भीड़ और बदइंतजामी का त्रास

मीरजापुर, 17 अप्रैल (Udaipur Kiran) ।

जिगना क्षेत्र के नीबी गहरवार, जासा-बघौरा, रसौली और गौरा गांवों के गो-आश्रय स्थल अब ‘आश्रय’ कम और ‘संकट स्थल’ ज्यादा बन गए हैं। यहां रह रहे गोवंश भीषण गर्मी और प्रशासनिक उपेक्षा की दोहरी मार से बेहाल हैं। जिन टिनशेड के नीचे ये मासूम जानवर छांव की उम्मीद लिए बैठे हैं, वही अब तपते तंदूर जैसे बन गए हैं।

गोशालाओं की हालत ऐसी है कि जितनी जगह 50 जानवरों के लिए बनी थी, वहां 150 से ज़्यादा जानवर ठूंसे गए हैं। नीबी गहरवार में 178 और सिकटिहा में 54 गोवंशों को जबरन समेटा गया है—वो भी बिना किसी ढंग की छाया, ठंडे पानी या हरे चारे के।

हालात ऐसे हैं कि पशु भूसा खाकर किसी तरह जिंदा हैं, लेकिन सेहत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। हरगढ़ के पशु चिकित्साधिकारी डॉ. सुभाष सिंह भी मानते हैं कि पौष्टिक आहार तो दूर की बात है, इलाज भी सूचना मिलने पर ही होता है।

स्थानीय प्रधानों की मानें तो किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए आवारा गोवंश को जबरन आश्रय स्थलों में छोड़ देते हैं। नीबी गहरवार की प्रधान माधुरी सोनकर बताती हैं कि विरोध करने पर किसान झगड़े पर उतारू हो जाते हैं।

हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि जो गोवंश दम तोड़ रहे हैं, उन्हें वहीं पास में गड्ढा खोदकर दफना दिया जा रहा है। लेकिन तेज़ गर्मी में उठती बदबू राहगीरों को नाक पर रूमाल रखने को मजबूर कर देती है।

वीडीओ रामपाल का दावा है कि आश्रय स्थलों की नियमित जांच होती है, लेकिन जमीनी हकीकत उसके उलट है। मूक प्राणियों की ये दुर्दशा देख पशु प्रेमी अब डीएम से हस्तक्षेप की गुहार लगा रहे हैं, ताकि गर्मी, भूख और बीमारी से तड़पते इन बेजुबानों को कुछ राहत मिल सके।

(Udaipur Kiran) / गिरजा शंकर मिश्रा

Uttar Pradesh

धूप में झुलसते गोवंश, संकट में पनाह साबित हो रहें आश्रय स्थल

जासा-बघौरा गांव के गोवंश आश्रय स्थल में क्षमता से अधिक गोवंश।

जिगना के गोशालाओं में तपिश, भीड़ और बदइंतजामी का त्रास

मीरजापुर, 17 अप्रैल (Udaipur Kiran) ।

जिगना क्षेत्र के नीबी गहरवार, जासा-बघौरा, रसौली और गौरा गांवों के गो-आश्रय स्थल अब ‘आश्रय’ कम और ‘संकट स्थल’ ज्यादा बन गए हैं। यहां रह रहे गोवंश भीषण गर्मी और प्रशासनिक उपेक्षा की दोहरी मार से बेहाल हैं। जिन टिनशेड के नीचे ये मासूम जानवर छांव की उम्मीद लिए बैठे हैं, वही अब तपते तंदूर जैसे बन गए हैं।

गोशालाओं की हालत ऐसी है कि जितनी जगह 50 जानवरों के लिए बनी थी, वहां 150 से ज़्यादा जानवर ठूंसे गए हैं। नीबी गहरवार में 178 और सिकटिहा में 54 गोवंशों को जबरन समेटा गया है—वो भी बिना किसी ढंग की छाया, ठंडे पानी या हरे चारे के।

हालात ऐसे हैं कि पशु भूसा खाकर किसी तरह जिंदा हैं, लेकिन सेहत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। हरगढ़ के पशु चिकित्साधिकारी डॉ. सुभाष सिंह भी मानते हैं कि पौष्टिक आहार तो दूर की बात है, इलाज भी सूचना मिलने पर ही होता है।

स्थानीय प्रधानों की मानें तो किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए आवारा गोवंश को जबरन आश्रय स्थलों में छोड़ देते हैं। नीबी गहरवार की प्रधान माधुरी सोनकर बताती हैं कि विरोध करने पर किसान झगड़े पर उतारू हो जाते हैं।

हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि जो गोवंश दम तोड़ रहे हैं, उन्हें वहीं पास में गड्ढा खोदकर दफना दिया जा रहा है। लेकिन तेज़ गर्मी में उठती बदबू राहगीरों को नाक पर रूमाल रखने को मजबूर कर देती है।

वीडीओ रामपाल का दावा है कि आश्रय स्थलों की नियमित जांच होती है, लेकिन जमीनी हकीकत उसके उलट है। मूक प्राणियों की ये दुर्दशा देख पशु प्रेमी अब डीएम से हस्तक्षेप की गुहार लगा रहे हैं, ताकि गर्मी, भूख और बीमारी से तड़पते इन बेजुबानों को कुछ राहत मिल सके।

(Udaipur Kiran) / गिरजा शंकर मिश्रा

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