कानपुर, 11 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । न्यूरो यानी दिमाग से जुड़ी बीमारियों जैसे मिर्गी को लेकर समाज और इससे ग्रसित तमाम लोगों में कई भ्रांतियां फैली हुई है। साथ ही ज्यादा तनाव लेने से भी लोग न्यूरो पेशेंट बनते जा रहे हैं। ऐसे में न्यूरो से जुड़े किसी भी तरह के लक्षण होने पर डॉक्टरों द्वारा इससे बचाव और उसके इलाज को लेकर बुधवार को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर में न्यूरोटिक कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें देश के तमाम शहरों से न्यूरो के डॉक्टरों ने हिस्सा लेते हुए इस जटिल बीमारी से जुड़ी कई जांचों और लक्षणों को लेकर गहनता से चर्चा की।
आईआईटी कानपुर के मेहता फैमिली सेंटर फॉर इंजीनियरिंग इन मेडिसिन द्वारा इनोवेशन इन न्यूरोटेक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में क्लिनिकल न्यूरोसाइंस, कम्प्यूटेशनल न्यूरोसाइंस और न्यूरोइंजीनियरिंग के विशेषज्ञों हिस्सा लिया। कार्यशाला की शुरुआत आईआईटी कानपुर में जैविक विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग (बीएसबीई) के प्रमुख प्रोफेसर अमिताभ बंद्योपाध्याय ने आये हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि, प्रो. अर्जुन रामकृष्णन द्वारा आयोजित इस कार्यशाला को आईआईटी कानपुर और राइस यूनिवर्सिटी से सीड ग्रांट के साथ-साथ जय पुल्लुर न्यूरोसाइंस इनिशिएटिव और न्यूरोसाइंस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के बिना इस कार्यक्रम की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, जिसके लिए हम उनके आभारी है। उन्होंने कहा कि लगातार इस क्षेत्र में तेजी से प्रगति हो रही है। उन्होंने बताया कि गंगवाल स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस एंड टेक्नोलॉजी और मेहता फैमिली सेंटर फॉर इंजीनियरिंग इन मेडिसिन जैसी अग्रणी पहलों के माध्यम से इस प्रगति में आईआईटी कानपुर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
कार्यशाला में दो विषय सत्र को शामिल किया गया था। पहले सत्र के इनोवैशन इन ब्रैन मोनटोरींग, इमप्लान्टस एण्ड एपिलेप्सी सत्र में एम्स कोच्चि के डॉ. हरिलाल और डीएमएच पुणे के डॉ. नीलेश कुरवाले जैसे विशेषज्ञों की प्रस्तुतियाँ शामिल की गई थीं। उन्होंने भारत में मिर्गी की देखभाल के लिए इनवेसिव न्यूरल मॉनिटरिंग तकनीकों पर गहनता से चर्चा कर मिर्गी सर्जरी के उच्च-मात्रा परिदृश्य में प्राप्त कठिनाइयों और प्रगति दोनों पर प्रकाश चर्चा की। साथ ही यूटी हेल्थ के प्रो० जॉन सीमोर ने बेहतर सर्जिकल परिणामों के लिए इलेक्ट्रोड प्लेसमेंट को अनुकूलित करने के लिए कम्प्यूटेशनल विधियों को सभी के सामने रखते हुए राइस-आईआईटी कानपुर सहयोग से सभी के साथ साझा किया। जिसके बाद सेंसोमेडिकल के सीईओ मारून फराह ने पहुंच में सुधार के उद्देश्य से लागत प्रभावी और उच्च गुणवत्ता वाली स्टीरियो ईईजी तकनीक पेश की। वहीं प्रो. नितिन टंडन ने एआई-आधारित मॉडल प्रदर्शित करते हुए मिर्गी के रोगियों में भाषा प्रसंस्करण के लिए आवश्यक तंत्रिका अवधारणाओं की व्याख्या की।
वहीं दूसरे सत्र के, एड्वान्स इन न्यूरोमॉड्यूलेशन में अभिनव न्यूरोमॉड्यूलेशन तकनीकों पर सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। प्रो. बेहनाम आज़हांग के मुताबिक ईईजी और ईसीजी से प्राप्त बायोमार्कर ग्लाइम्फैटिक बहाव का अनुमान लगा सकते हैं। साथ ही रेडियोफ्रीक्वेंसी उत्तेजना इसे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुई। प्रो. प्रगति प्रियदर्शिनी ने इलेक्ट्रोगैस्ट्रोग्राम और ईईजी संकेतों के साथ वैगल टोन को जोड़ा, जबकि प्रो. निकुंज भगत ने क्लोज्ड-लूप सिस्टम के लिए निष्क्रिय मस्तिष्क-कम्प्यूटर इंटरफेस प्रस्तुत किया। प्रो. वेंकटसुब्रमण्यम गणेशन ने उपचार-प्रतिरोधी सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों को कम करने के लिए कस्टम-डिज़ाइन किए गए टीडीसीएस उपकरणों सहित नॉन-इनवेसिव सिम्युलेशन तकनीकों को लेकर चर्चा करते हुए वहां पर मौजूद अन्य डॉक्टरों से सवाल जवाब भी किये।
मीडिया प्रभारी रुचा खेडेकर ने बताया कि इस कार्यक्रम में इम्प्लांटेबल ब्रेन डिवाइस, क्लोज्ड-लूप न्यूरोमॉड्यूलेशन सिस्टम और ब्रेन-मशीन इंटरफेस पर चर्चा की गई। चर्चाओं में डिवाइस डिज़ाइन को अनुकूलित करने, न्यूरोमॉड्यूलेशन रणनीतियों को परिष्कृत करने और क्लिनिकल परिणामों को बेहतर बनाने में कम्प्यूटेशनल मॉडल की भूमिका को रेखांकित किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य कम संसाधन सेटिंग्स के अनुरूप लागत प्रभावी और स्केलेबल न्यूरोटेक्नोलोजी का विकास है।
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(Udaipur Kiran) / अजय सिंह