Uttar Pradesh

बीएचयू के वनस्पति वैज्ञानिकों ने गेहूं में सूखा-प्रेरित अंतरपीढ़ीगत प्राइमिंग पर किया शोध

वनस्पति वैज्ञानिकों की टीम

—यह तकनीक दीर्घकालिक फसल संरक्षण के लिए उपयोगी,फसलों को रोगों से बचाने का समाधान

वाराणसी,06 जनवरी (Udaipur Kiran) । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वनस्पति विज्ञान संकाय के वैज्ञानिकों की टीम ने गेहूं में सूखा-प्रेरित अंतरपीढ़ीगत प्राइमिंग पर अध्ययन शोध प्रकाशित किया है। आधुनिक कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में इसे देखा जा रहा है। डॉ. प्रशांत सिंह और उनकी शोध टीम ने यह शोध किया है। सहकर्मी-समीक्षित पत्रिका फिजियोलॉजिकल एंड मॉलिक्यूलर प्लांट पैथोलॉजी (पीएमपीपी) में प्रकाशित अध्ययन में यह बताया गया है कि सूखा प्राइमिंग—जो नियंत्रित जल तनाव पर आधारित एक तकनीक है। गेहूं की बाइपोलारिस सोरोकिनियाना नामक कवक के कारण होने वाले स्पॉट ब्लॉटच नामक गंभीर रोग से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। यह अभिनव दृष्टिकोण कृषि की सबसे बड़ी चुनौतियों का टिकाऊ समाधान प्रदान करता है।

शोध टीम के अनुसार सूखा प्राइमिंग एक मांग-आधारित सुरक्षा रणनीति के रूप में कार्य करता है, जो पौधों को भविष्य के तनाव के लिए तैयार करते हुए संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने और अनावश्यक चयापचय लागत को कम करने में सक्षम बनाता है। डॉ. सिंह की टीम ने यह खोज की कि सूखा प्राइमिंग से होने वाले सुरक्षा लाभ अगली पीढ़ियों में भी स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिससे यह तकनीक दीर्घकालिक फसल संरक्षण के लिए अत्यंत मूल्यवान बनती है। सूखा-प्राइम किए गए गेहूं की संतति में उन्नत प्रतिरक्षा प्रणाली देखी गई, जिसमें एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि और रक्षा एंजाइम उत्पादन में वृद्धि शामिल है, जो रोगजनकों के हमले के दौरान सक्रिय होती है लेकिन सामान्य वृद्धि को प्रभावित नहीं करती। डॉ सिंह के अनुसार गेहूं (ट्रिटिकम एस्टीवम) पर केंद्रित इस शोध ने यह साबित किया कि सूखा-प्रेरित प्राइमिंग न केवल बाइपोलारिस सोरोकिनियाना (स्पॉट ब्लॉटच रोग का रोगजनक) के प्रति प्रतिरोध को बढ़ाती है, बल्कि इस सुरक्षा को अगली पीढ़ी (जी—1) में भी स्थानांतरित करती है। शोध निष्कर्ष यह स्थापित करते हैं कि सूखा-प्रेरित अंतरपीढ़ीगत प्राइमिंग एक टिकाऊ और रसायनमुक्त रणनीति के रूप में फसलों को रोगों से बचाने का समाधान प्रदान कर सकती है। यह अध्ययन उन लचीली फसल किस्मों के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, जो बदलते पर्यावरणीय परिस्थितियों में पनपने में सक्षम हैं। सूखा प्राइमिंग के अंतर्गत चयापचय समायोजन और नियामक तंत्र की समझ में मौजूद महत्वपूर्ण अंतराल को संबोधित करके, यह शोध कृषि स्थिरता में नवाचार के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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