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विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस पर एनसीपीयूएल के तत्वावधान में पुस्तक सम्मेलन का आयोजन

NCPUL Book Conclave on book and Copyright day
NCPUL Book Conclave on book and Copyright day

– पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ-साथ कॉपीराइट मुद्दों का समाधान भी जरूरी : डॉ. शम्स इकबाल

नई दिल्ली, 23 अप्रैल (Udaipur Kiran) । पुस्तकों का कॉपीराइट से बहुत गहरा संबंध है। शायद यही कारण है कि दोनों का विश्व दिवस हर वर्ष एक ही दिन अर्थात 23 अप्रैल को संयुक्त रूप से मनाया जाता है। ऐसे में राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) के तत्वावधान में राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में बुधवार को आयोजित एक दिवसीय पुस्तक सम्मेलन काफी सफल और समग्र कहा जा सकता है, जिसमें कॉपीराइट की चुनौतियों से लेकर नई पीढ़ी में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने जैसे विषयों को शामिल किया गया। इसके साथ ही कई पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

पुस्तक सम्मेलन के अंतर्गत तीन सत्र आयोजित किए गए। पहले सत्र का शीर्षक ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में कॉपीराइट की चुनौतियां’ था जिसकी अध्यक्षता जामिया हमदर्द के कुलपति प्रो. मोहम्मद अफशार आलम ने की। राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल ने परिचयात्मक एवं स्वागत भाषण देते हुए कहा कि एक पुस्तक पाठक, लेखक और प्रकाशक की त्रिमूर्ति से बनती है। किसी पुस्तक से बौद्धिक विमर्श स्थापित किया जा सकता है। केवल पुस्तकों के माध्यम से ही हम सभ्य समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा है कि लेखन और सृजन का उदाहरण बच्चे का है, जो उसके लेखक की संपत्ति है। किसी की पुस्तक या रचना को अपने नाम से कृत्रिम बुद्धि (एआई) या किसी अन्य माध्यम से प्रकाशित करना किसी के बच्चे का अपहरण करने जैसा है।

प्रो. मोहम्मद अफशार आलम ने अध्यक्षीय भाषण देते हुए कहा कि कॉपीराइट आज के युग का एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है और सरकार के साथ-साथ कई शैक्षणिक संस्थान भी इसके प्रति संवेदनशील हो गए हैं और इस संबंध में कदम भी उठा रहे हैं। राष्ट्रीय उर्दू परिषद का यह कार्यक्रम इस संबंध में एक यादगार कदम है।

वाणी प्रकाश ग्रुप, नई दिल्ली की सीईओ सुश्री अदिति माहेश्वरी ने कहा कि एआई के युग में कॉपीराइट के मुद्दे बहुत बढ़ गए हैं। वर्तमान युग में, जब एआई अपने चरम पर है, एक नए संशोधित कॉपीराइट कानून की आवश्यकता है।

अपने भाषण में प्रख्यात बौद्धिक संपदा अधिकारों की वकील डाहलिया सेन ओबेरॉय ने कॉपीराइट के विभिन्न पहलुओं तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में इसकी चुनौतियों पर सुसंगत एवं विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि कॉपीराइट का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कानूनी एवं न्यायिक कार्रवाई की जा सकती है, क्योंकि कॉपीराइट का उल्लंघन वास्तव में किसी की मेहनत पर पानी फेरने जैसा है तथा किसी दूसरे की संपत्ति हड़पने जैसा है। सत्र का संचालन डॉ. शादाब शमीम ने किया।

दूसरे सत्र में ‘प्रेमचंद: मोतालए की नई जेहतें’ नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। यह पुस्तक प्रख्यात हिंदी विद्वान डॉ. कमल किशोर गोयनका द्वारा लिखी गई है तथा मोहम्मद सगीर हुसैन द्वारा अनुवादित है। कार्यक्रम की अध्यक्षता ए. रहमान ने की। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने विभिन्न भाषाओं से उर्दू अनुवाद में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनुवादक की क्षेत्रीय संबद्धता आदि के कारण अनुवाद की भाषा बदल जाती है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद पर लिखी गई इस पुस्तक में उनके जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में इतनी महत्वपूर्ण जानकारी है कि इस दृष्टि से यह पुस्तक अद्वितीय मानी जा सकती है।

इस अवसर पर प्रो. मोहम्मद काज़िम, प्रो. शाहीना तबस्सुम और पुस्तक के अनुवादक मुहम्मद डी. सगीर हुसैन ने भी पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए। प्रो. सगीर आफराहीम सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने उक्त पुस्तक और प्रेमचंद के संबंध में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला। इस सत्र का संचालन नायाब हसन ने किया।

तीसरे सत्र का विषय ‘नई पीढ़ी में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना’ था, जिसकी अध्यक्षता डॉ. मोहम्मद असलम परवेज़ (पूर्व कुलपति, एमएएनयू, हैदराबाद) ने की। अपने अध्यक्षीय भाषण की शुरुआत में उन्होंने इस सम्मेलन के प्रथम सत्र के विषय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में कॉपीराइट की चुनौतियां का उल्लेख करते हुए कहा कि आज के एआई के युग में कोई भी अपनी रचना पर दावा नहीं कर सकता। इसके लिए उन्होंने अपने व्यक्तिगत व्यक्तित्व के विकास में अपने परिवार, रिश्तेदारों और प्राथमिक शिक्षा संस्थानों से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों की भूमिका का जिक्र किया और कहा कि इन सभी का इसमें योगदान है। ऐसी स्थिति में, मैं जो कुछ लिखता हूं, उसे अपनी निजी संपत्ति कैसे कह सकता हूं?

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ज्ञान का वास्तविक अर्थ विज्ञान है और वैज्ञानिक मानसिकता अपनाए बिना हम व्यक्तिगत और सामूहिक विकास हासिल नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि उर्दू में वैज्ञानिक सामग्री तैयार करना और उसका अधिक से अधिक प्रकाशन करना वर्तमान युग की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

इस अवसर पर डॉ. माजिद अहमद तालिकोटी ने कहा कि राष्ट्रीय उर्दू परिषद वैज्ञानिक सामग्री के अनुवाद और प्रकाशन में सराहनीय सेवाएं प्रदान कर रही है। उन्होंने कहा कि हमें शिक्षा सहित जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इस सत्र में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अब्दुल मोईज शम्स ने नी भी अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन डॉ. अब्दुल बारी ने किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा प्रकाशित बच्चों की पुस्तकों इंसानी दिमाग (अनस मसरूर अंसारी), भोजी नहीं बोजी, मछली के बच्चे, खजानों की तलाश और उरैश का विमोचन भी किया गया।

सम्मेलन के शुरू होने से पहले पहलगाम आतंकवादी घटना के शहीदों को श्रद्धांजलि देने तथा हृदय विदारक घटना की निंदा करने के लिए दो मिनट का मौन रखा गया।

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(Udaipur Kiran) / मोहम्मद शहजाद

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