

-बोडोलैंड विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह में शामिल हुए राज्यपाल
कोकराझार (असम), 16 फरवरी (Udaipur Kiran) । राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य ने कहा कि वर्ष 2009 में स्थापित बोडोलैंड विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है, जो बौद्धिक विकास, सांस्कृतिक संरक्षण और नवाचार में अहम भूमिका निभा रहा है।
राज्यपाल ने आज कोकराझार में विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ने 15 वर्षों की अवधि में उच्च शिक्षा, शोध और विकास में एक विशिष्ट पहचान बनाई है। उन्होंने बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) के लोगों के शैक्षणिक विकास और सांस्कृतिक संरक्षण एवं नवाचार में इसके योगदान की सराहना की।
राज्यपाल ने इस अवसर पर डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि दीक्षांत समारोह में डिग्री प्राप्त करना छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि का उत्सव है। उन्होंने छात्रों से अपनी शैक्षणिक यात्रा को संजोने का आग्रह किया, क्योंकि उनकी डिग्री न केवल उनके व्यक्तिगत विकास का प्रतीक है, बल्कि उन्हें अपने समाज पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ने का अवसर भी प्रदान करती है।
शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर
राज्यपाल ने शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति पर बल देते हुए छात्रों से बदलते समय के साथ खुद को ढालने, सीखने और जीवनभर आगे बढ़ने की क्षमता विकसित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि डिग्री प्राप्त करने के साथ-साथ छात्रों की जिम्मेदारी भी बढ़ती है और उन्हें समाज को कुछ लौटाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने छात्रों से समाज को सशक्त बनाने और योग्य मानव संसाधन विकसित करने में योगदान देने का आह्वान किया।
राज्यपाल ने बोडो भाषा, साहित्य और संस्कृति की समृद्धि की सराहना करते हुए कहा कि बोडो भाषा और साहित्य ने भारत की विशाल साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस अवसर पर उन्होंने गुरुदेव कालीचरण ब्रह्म और बोडोफा उपेंद्रनाथ ब्रह्म को श्रद्धांजलि अर्पित की।
ज्ञान की सर्वोच्च शक्ति पर बल
राज्यपाल ने कहा, ज्ञान केवल तथ्यों का संकलन नहीं है; यह प्रगति की कुंजी है और वही आधार है जिस पर सभ्यताएं स्थापित होती हैं। उन्होंने भगवद गीता और ऋग्वेद का उल्लेख करते हुए कहा कि ज्ञान मानव सभ्यता का सार है, जो व्यक्तियों को सशक्त बनाता है और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करता है।
उन्होंने छात्रों को विभिन्न रूपों में ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया, जिसमें व्यावहारिक ज्ञान, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सांस्कृतिक जागरूकता शामिल हैं। स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में पूर्ण है, और शिक्षा उस पूर्णता को प्रकट करने का माध्यम है। उन्होंने छात्रों से शिक्षा के प्रति समर्पित रहने और इसके माध्यम से अपने जीवन को बेहतर बनाने का आग्रह किया।
प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक शिक्षा का समन्वय
बदलते ज्ञान परिदृश्य पर बोलते हुए, राज्यपाल ने प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक उन्नति के एकीकरण के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का उल्लेख करते हुए कहा कि यह नीति 21वीं सदी की पहली समग्र नीति है, जो प्राचीन ज्ञान और आधुनिक शिक्षा को संतुलित करने का प्रयास करती है। उन्होंने कहा कि यह नीति भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति में बदलने में सहायक होगी।
राज्यपाल ने कौशल विकास, अनुसंधान और नवाचार के महत्व को भी रेखांकित किया और छात्रों से जीवनभर सीखने की प्रवृत्ति अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने विशेष रूप से महिलाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आगे बढ़ने और देश के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित किया।
16,494 विद्यार्थियों को प्रदान की गई डिग्री
उल्लेखनीय है कि दीक्षांत समारोह में कुल 16,494 छात्रों को डिग्री प्रदान की गई, जिसमें 79 पीएचडी, 7 एमफिल और 55 स्वर्ण पदक शामिल हैं।
इस अवसर पर बीटीसी के मुख्य कार्यकारी सदस्य (सीईएम) प्रमोद बोडो, बोडोलैंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीएल आहूजा, संकाय सदस्य, छात्र और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
(Udaipur Kiran) / किशोर मिश्रा
