Uttrakhand

‘एक देश-एक चुनाव’ केवल ध्यान भटकाने का भाजपा का मुद्दा : यशपाल आर्य

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य

देहरादून, 19 सितंबर (Udaipur Kiran) । केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसे संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है। इसे लेकर विवाद भी शुरू हो गया है। विपक्षी दल इससे सहमत नहीं हैं। उत्तराखंड में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने इसे लेकर भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि एक देश-एक चुनाव केवल ध्यान भटकाने का भाजपाई मुद्दा है। चुनाव आयोग चार राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं करा पा रहा है तो यह एक देश-एक चुनाव कैसे करा पाएंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा अच्छी तरह जानती है कि यह संभव नहीं है। इस संवैधानिक संशोधन को लोकसभा में पारित करने के लिए 362 वोट चाहिए और पूरा एनडीए मिलाकर 293 है।

नेता प्रतिपक्ष यशपाल ने कहा कि अनुच्छेद 85(2)(ख) के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा को और अनुच्छेद 174(2)(ख) के अनुसार राज्यपाल विधानसभा को पांच वर्ष से पहले भी भंग कर सकते हैं। अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाकर लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। इसी तरह अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में संबंधित राज्य के राजनीतिक समीकरण में अप्रत्याशित उलटफेर होने से वहां फिर से चुनाव की संभावना बढ़ जाती है। ये सारी परिस्थितियां एक देश-एक चुनाव के विपरीत हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि एक देश-एक चुनाव से लोकतंत्र की विविधता और संघीय ढांचे को खतरा बढ़ेगा। लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव का स्वरूप और मुद्दे बिल्कुल अलग होते हैं। लोकसभा के चुनाव जहां राष्ट्रीय सरकार के गठन के लिए होते हैं, वहीं विधानसभा के चुनाव राज्य सरकार का गठन करने के लिए होते हैं। उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के सामने दब सकते हैं। क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रीय राजनीति में खो सकते हैं या राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएं या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें।

नेता प्रतिपक्ष आर्य ने कहा कि लोकतंत्र को जनता का शासन कहा जाता है। देश में संसदीय प्रणाली होने के नाते अलग-अलग समय पर चुनाव होते रहते हैं और जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति लगातार जवाबदेह बने रहना पड़ता है। इसके अलावा कोई भी पार्टी या नेता एक चुनाव जीतने के बाद निरंकुश होकर काम नहीं कर सकता क्योंकि उसे छोटे-छोटे अंतरालों पर किसी न किसी चुनाव का सामना करना पड़ता है। अगर दोनों चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो ऐसा होने की आशंका बढ़ जाएगी और संवैधानिक बाधाओं की अनदेखी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर कर सकती है। स्थिरता की आड़ में जनप्रतिनिधित्व का ह्रास न हो। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि जब सभी चुनाव एक साथ होंगे तो स्थानीय मुद्दे जैसे पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। राष्ट्रीय मुद्दे अधिक प्रमुख हो जाएंगे। इससे मतदाता अपने स्थानीय प्रतिनिधियों के बारे में सही निर्णय नहीं ले पाएंगे।

आर्य ने कहा कि इस सिस्टम को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधन करने होंगे, जो एक जटिल प्रक्रिया है। इससे राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ सकती है। ये संविधान के खिलाफ और लोकतंत्र के प्रतिकूल है। अगर कोई भी सरकार पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती तो क्या वहां राष्ट्रपति शासन के माध्यम से भाजपा राज करना चाहती है?

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(Udaipur Kiran) / कमलेश्वर शरण

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