धर्मशाला, 13 जुलाई (Udaipur Kiran) ।प्रदेश में हुए विधानसभा के उपचुनावों के परिणाम ने भाजपा को मंथन करने का संदेश दिया है। इन परिणाम के बाद पार्टी कैडर के सहारे किसी को भी चुनाव जिता देने के भाजपा के दावे भी खारिज हो गए हैं। भले ही भाजपा अनुशासित और संगठित पार्टी होने का दावा करती हो, लेकिन उपचुनाव में कैडर से बाहर के प्रत्याशियों को उतारने के बाद उसके सामने अपने वर्कर को उम्मीदवार के साथ खड़ा करना चुनौती बन गया है।
राजनीतिक विशलेषक यह भी मान रहे हैं कि अब भाजपा में समन्वय बिठाने वाले नेताओं की कमी हो गई है। जिस बजह से नेता व कार्यकर्ता बागी होने लगे हैं।
हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद भाजपा ने सहयोग देने वाले विधायकों को उपचुनावों में पार्टी का कैंडीडेंट तो घोषित कर दिया, लेकिन जो कार्यकर्ता बरसों से पार्टी के साथ चल रहा था, उसे एकाएक विरोधी पार्टी से आए नेता को स्वीकार करना काफी मुश्किल था। शीर्ष लेवल पर तो सब कुछ अच्छा दिख रहा था, लेकिन भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ताओं के मन कहीं न कहीं टीस भी थी और उपचुनावों में समन्वय नहीं बन पाया। जिसका असर यह हुआ कि भाजपा को नौ में से महज तीन सीटों पर ही जीत मिल पाई।
इसके पीछे भी जानकार मानते हैं कि भाजपा को जो धर्मशाला, बडसर और हमीरपुर में जीत दर्ज हुई है, वह वहां के उम्मीदवारों की अपनी पकड़ व भाजपा के बीच घुलमिलने का लाभ मिल पाया। लोकसभा चुुनावों में जहां भाजपा को बंपर बढ़त मिली तो वहीं उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी के लिए कम वोटिंग हुई। अकेले धर्मशाला की ही बात करें तो धर्मशाला में राजीव भारद्वाज के मुकाबले सुधीर शर्मा को करीब 4 हजार कम वोट मिले थे। यहीं नहीं हमीरपुर में भी अनुराग ठाकुर अच्छे मार्जिन से जीत दर्ज कर गए, लेेकिन सुजानपुर से भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में यह स्पष्ट है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने लोकसभा में तो पार्टी को वोट किया, लेकिन विधानसभा उपचुनावों में नाराजगी साफ देखी जा सकती है।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया शुक्ला
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