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लम्बी कानूनी लड़ाई के कारण उम्र सीमा पार याचियों को मुआवजा देना बेहतर विकल्प : हाईकोर्ट 

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

–नियमित नहीं किए जा सके रेलवे कर्मचारियों को 5 लाख मुआवजा देने का निर्देश

प्रयागराज, 04 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेलवे में नियमितीकरण की लड़ाई लड़ रहे मजदूरों को मुआवजा देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार और उत्तर मध्य रेलवे को याचियों का नियमितीकरण करने के बजाय उनको मुआवजा देने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने कहा कि लम्बी कानूनी लड़ाई के चलते याची नौकरी के लिए निर्धारित आयु से अधिक हो चुके हैं। ऐसे में नियमित करने का निर्देश जारी करना उचित नहीं है। कोर्ट ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए प्रत्येक याची या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने रमेश चंद्र बारी और 13 अन्य की याचिका पर दिया।

उत्तर मध्य रेलवे ने 2005 में एक अधिसूचना जारी कर पूर्व अस्थायी मजदूरों को नियमित रोजगार पाने के लिए स्क्रीनिंग परीक्षा में शामिल होने का अवसर दिया था। याचिकाकर्ताओं में रमेश चंद्र बारी और अन्य 13 श्रमिक शामिल हुए थे। 10 अक्टूबर से 6 नवम्बर 2007 के बीच हुई स्क्रीनिंग परीक्षा में भाग लिया। जब 10 दिसम्बर 2007 को परिणाम घोषित किए गए, तो केवल एक उम्मीदवार अविनाशी प्रसाद को सफल घोषित किया गया। इसे केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) में चुनौती दी गई। 2011 में उनके पक्ष में फैसला आया।

रेलवे को परिणाम घोषित करने और सफल उम्मीदवारों को नियमित करने का आदेश दिया गया। इसके बाद भी रेलवे ने नियुक्ति नहीं दिया। बार-बार अदालतों के आदेशों का पालन करने से इन्कार कर दिया, जिससे कानूनी लड़ाई और लम्बी खिंच गई। हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी गई।

खंडपीठ ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि एक बार जब याचिकाकर्ताओं की पात्रता से सम्बंधित आपत्तियों पर फैसला हो गया और उनके पक्ष में आदेश पारित हो गया, तो रेलवे को उन पर फिर से आपत्ति उठाने का कोई अधिकार नहीं था। खंडपीठ ने यह भी उल्लेख किया कि रेलवे बार-बार अपना पक्ष बदलता रहा। पहले उम्र को आधार बनाया, फिर सेवा अवधि को लेकर आपत्ति उठाई और अंततः 2013 में उन्हें असफल घोषित कर उनकी उपयुक्तता पर सवाल उठाया। अदालत ने कहा कि रेलवे ने उन्हीं मुद्दों को दोहराया जिन पर पहले ही फैसला हो चुका था।

हाईकोर्ट ने यह माना कि 2025 तक याचिकाकर्ता नियमितीकरण के लिए निर्धारित आयु सीमा से बाहर हो चुके हैं, जिससे उनकी पुनर्नियुक्ति व्यावहारिक रूप से असम्भव हो गई है। लेकिन, लम्बे समय तक चली कानूनी लड़ाई को ध्यान में रखते हुए अदालत ने प्रत्येक याचिकाकर्ता और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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