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—वैदिक एजुकेशनल रिसर्च सोसायटी ने कराया वाईटल सेल्फ मेडिटेशन
वाराणसी, 21 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । विश्व ध्यान दिवस पर शनिवार को छित्तुपुर सामनेघाट तारानगर कॉलोनी स्थित वेद मंदिर में विशेष ध्यान सत्र का आयोजन किया गया। मंदिर परिसर में वैदिक एजुकेशनल रिसर्च सोसायटी के बैनर तले वैदिक ब्राम्हणों और बटुकों ने ध्यान लगाया। ज्योतिर्विद पंडित शिवपूजन चतुर्वेदी ने ध्यान को सुलभ बनाने के लिए अपने विशेषज्ञों के गहन शोध के बाद खोजी गई वाईटल सेल्फ मेडिटेशन सहज ध्यान विधि का अभ्यास कराया। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस मनाने की घोषणा की है। यह घोषणा प्राचीन भारतीय ज्ञान की श्रेष्ठता और वैज्ञानिकता का वैश्विक उद्घोष है। यह इस बात का प्रमाण है कि दुनिया ध्यान के लाभकारी प्रभावों को कितना महत्व देती है। यह विशेष कार्यक्रम पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष मनाया जाएगा, जिससे सभी को ध्यान की सकारात्मक शक्ति का एहसास होगा।
उन्होंने बताया कि इस वर्ष वैश्विक शांति और सद्भाव के लिए ध्यान की अद्भुत थीम के साथ इसका प्रारंभ किया गया। वाईटल सेल्फ मेडिटेशन सहज ध्यान विधि का अभ्यास पिछले कई वर्षों से भारत तथा विदेशों में दक्ष प्रशिक्षकों के माध्यम से संस्था करा रही है। अपने वैश्विक आउटरीच और शिक्षण के हिस्से के रूप में सोसायटी दुनिया भर में सामान्य नागरिकों, सरकारी केंद्रों, राजनयिक मिशनों और ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर इस विशिष्ट ध्यान के सत्र आयोजित कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत,विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा और पहल से संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व योग दिवस के बाद 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस घोषित किया है। इससे सोसायटी गौरवान्वित महसूस कर रही है।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा ध्यान को सर्वसम्मति से मान्यता देना एक महत्वपूर्ण कदम है। विश्व में बढ़ते तनाव, हिंसा और सामाजिक अलगाव का मुकाबला करने में ध्यान की क्षमता अद्भुत है। ध्यान मानसिक स्पष्टता, भावनात्मक लचीलापन और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी उपकरण माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय ऋषियों का महान ज्ञान अब भौगोलिक सीमाओं को पार कर गया है। हाल के दशकों में, ध्यान अंतरराष्ट्रीय सद्भावना, मानसिक कल्याण और जीवन पर एक अद्वितीय दार्शनिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए एक अद्भुत उपकरण के रूप में उभरा है। ध्यान की वैश्विक लोकप्रियता भारत के बढ़ते प्रभाव का प्रमाण है । क्योंकि दुनिया न केवल अपनी आर्थिक क्षमता के लिए बल्कि आध्यात्मिक परंपराओं में निहित ज्ञान के लिए भी भारत की ओर रुख कर रही है।
सत्र में वैदिक योगाचार्य सुनील चौबे,राधाकृष्ण, पं. राजीव रंजन तिवारी, पं. श्रीकृष्ण पाण्डेय, पं. सुनील पाठक आदि ने भागीदारी की।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
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