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बांग्‍लादेश का झुकाव चीन की ओर बढ़ा, भारत से होने वाला कारोबार प्रभावित होगा

भारत-बांग्ला देश के झंडे का लोगो का फाइल फोटो

नई दिल्ली, 26 अगस्त (Udaipur Kiran) । पन्द्रह साल पुरानी शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश अपने अब तक के सबसे बुरे राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। पाकिस्‍तान से 1971 में आजादी हासिल कर अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले 53 वर्ष पुराने बांग्‍लादेश में कानून-व्यवस्था भंग होने के चलते देश की अर्थव्‍यवस्‍था बुरी तरह लड़खड़ा गई है। सत्ता परिवर्तन के बाद वैकल्पिक व्यवस्था का झुकाव चीन की ओर दिखाई दे रहा है। इसका भारत के साथ होने वाले कारोबार पर इसका कुछ असर पड़ता दिख रहा है।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस चीन के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। मोहम्मद यूनुस ने हाल ही में चीनी राजदूत से मुलाकात की, जिसमें उन्होंने चीन से आर्थिक सहयोग बढ़ाने को लेकर बड़ी मांग की है। चीनी राजदूत ने उन्हें राष्ट्रपति शी जिनपिंग का संदेश भी दिया है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने एक दिन पहले रविवार को चीन से आग्रह किया कि वो बांग्लादेश में सोलर पैनल फैक्ट्रियां स्थापित करे। उन्होंने कहा है कि चीन कुछ सोलर पैनल फैक्ट्रियों को बांग्लादेश में स्थानांतरित कर दे।

बांग्‍लादेश में सत्‍ता परिवर्तन का असर भारत पर दिखने लगा है। हालांकि, इसका दूरगामी परिणाम क्‍या होगा इसका आकलन करना अभी जल्‍दबाजी होगा। पड़ोसी देश बांग्लादेश के साथ भारत का आयात कम और निर्यात ज्यादा है। भारत और बांग्लादेश के साथ गेहूं, कॉटन, कपड़ा आदि वस्‍तुओं का व्यापार करता है। इसके साथ ही भारत चावल की कुछ किस्‍में भी बांग्लादेश को निर्यात करता है। बांग्लादेश को बिजली का बड़ा हिस्सा भी भारत देता है। दोनों देशों के बीच ऑटो इंडस्ट्री से जुड़ी चीजों का भी व्यापार होता है। बांग्लादेश में बनी ढाकाई साड़ी की भारत में बहुत डिमांड रहती है।

जानकारों का मानना है कि बांग्लादेश में आए राजनीतिक संकट की वजह से भारत को व्यापार के क्षेत्र नें झटका लग सकता है। दरअसल भारत-बांग्लादेश के बीच कई चीजों का आयात और निर्यात होता है। विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक बीते वित्त वर्ष 2023-24 में दोनों देशों के बीच 14 अरब डॉलर (करीब 1.18 लाख करोड़ रुपये) का व्यापार हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में इसके और बढ़ने की संभावना थी। लेकिन, बांग्लादेश में सत्‍ता परिवर्तन के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों पर गहरा असर पड़ने की संभावना है। हालांकि, इस क्षेत्र की भौगोलिक बाधाएं चीन को अधिक प्रभाव प्राप्त करने से रोक सकती हैं। वहीं मालदीव का उदाहरण भी सामने है, जिसने भारत को आंखें दिखाकर चीन की तरफ कदम बढ़ाया था, लेकिन उसे जल्दी ही अपनी गलती का अहसास हो गया। विशेषज्ञों का मानना है कि कट्टरवादियों के दबाव में बांग्लादेश भले अभी को ऊल-जलूल फैसले ले रहा है लेकिन उसे आखिरकार भारत की सहायता की जरूरत पड़ेगी ही।

(Udaipur Kiran) / प्रजेश शंकर / जितेन्द्र तिवारी

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