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आरोपित को जेल का स्वाद चखाने के लिए जमानत अर्जी खारिज नहीं की जानी चाहिए : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट

-एक राष्ट्र एक राशनकार्ड योजना के लिए फर्जी निविदा जारी कर ठगने की आरोपित महिला की जमानत मंजूर

प्रयागराज, 25 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपित की जमानत अर्जी सबक के तौर पर कारावास का स्वाद चखाने के उद्देश्य से खारिज नहीं किया जाना चाहिए।

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि जमानत याचिका पर विचार करते समय आरोपों और सजा की गम्भीरता के अलावा इस बात पर भी सबसे अधिक विचार किया जाना चाहिए कि क्या आरोपित के फरार होने या गवाहों के साथ छेड़छाड़ या पीड़ित या गवाहों को डराने-धमकाने की सम्भावना है।

एकल न्यायाधीश ने माया तिवारी की जमानत याचिका स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की। उन पर एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना के लिए फर्जी निविदाएं जारी करके लोगों को ठगने के आरोप में धारा 406, 420, 419, 467, 468, 471 और 120-बी आईपीसी और धारा 66-डी आईटी अधिनियम के तहत मामला थाना-सराय ख्वाजा, जौनपुर में दर्ज किया गया। आरोपित महिला प्रयागराज की निवासी है।

आरोप है कि पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार की गई याची कथित तौर पर मंत्रालय के उपसचिव के नाम पर एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना के लिए फर्जी निविदाएं जारी करने वाले गिरोह के साथ काम करती थी। उसने इस आधार पर जमानत के लिए अदालत का रुख किया कि प्राथमिकी और प्रथम सूचनाकर्ता के बयान के अनुसार, जबकि आवेदक और उसके परिवार को 10 लाख रुपये हस्तांतरित किए गए। जबकि 8 लाख 70 हजार रुपये प्रथम सूचनाकर्ता को वापस भेजे गए।

याची के अधिवक्ता सौरभ पांडेय ने कोर्ट को बताया कि आरोपित ने पहले ही 5 लाख 20 हजार 500 रुपये की सहमत चेक राशि से अधिक राशि हस्तांतरित कर दिया है। याची मुख्य सह-आरोपित संतोष कुमार सेमवाल द्वारा की गई धोखाधड़ी का शिकार हुई है। जिसने कथित तौर पर पीएमओ से जारी किए गए जाली कार्य आदेश को तैयार किया और याची के व्हाट्सएप नंबर पर भेजा। जिसे याची ने ईमानदारी से पहले सूचनाकर्ता को भेज दिया।

अधिवक्ता ने मनीष सिसोदिया बनाम प्रवर्तन निदेशालय केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जमानत दंडात्मक नहीं होनी चाहिए। चूंकि, उनके सह-आरोपित को पहले ही जमानत मिल चुकी है। इसलिए उन्हें भी जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। न्यायालय ने मनीष सिसोदिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह देखा गया कि किसी व्यक्ति को लम्बे समय तक मुकदमे के दौरान जेल में रखना उचित नहीं है।

हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला यह नहीं है कि आवेदक, जो एक महिला है और 12 अक्टूबर 2023 से जेल में है, उसकी ओर से गवाहों के साथ छेड़छाड़ या पीड़िता या गवाहों को डराने-धमकाने की सम्भावना है। न्यायालय ने यह भी माना कि आज तक कोई आरोप तय नहीं किया गया। मुकदमे के जल्दी खत्म होने की कोई सम्भावना नहीं है। न्यायालय ने कहा सह-आरोपित को पहले ही जमानत मिल चुकी है। ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय ने याची की जमानत याचिका स्वीकार कर ली।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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