Uttar Pradesh

मणिकर्णिकाघाट पर बाबा महाश्मशान नाथ का त्रिदिवसीय वार्षिक श्रृंगार महोत्सव शुरू

बाबा महाश्मशान नाथ का त्रिदिवसीय वार्षिक श्रृंगार
बाबा महाश्मशान नाथ का त्रिदिवसीय वार्षिक श्रृंगार

—पहले दिन बाबा का रूद्राभिषेक, चंपा, चमेली, गेंदा ,गुलाब, रजनीगंधा के फूलों से भव्य श्रृंगार

वाराणसी,02 अप्रैल (Udaipur Kiran) । मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिकाघाट पर बाबा महाश्मशान नाथ का त्रिदिवसीय वार्षिक श्रृंगार महोत्सव बुधवार शाम से शुरू हुआ। बाबा महाश्मशान नाथ के मंदिर को तरह-तरह के फूलों से सजाने के बाद वैदिक मंत्रोंच्चार के बीच उनका रूद्राभिषेक किया गया।

महाश्मशान नाथ कमेटी के पदाधिकारी चैनू साव के अनुसार रूद्राभिषेक के बाद भक्तों के बीच प्रसाद वितरित किया गया। तीन अप्रैल को बाबा के मंदिर में विशाल भंडारा के बाद जागरण का कार्यक्रम होगा। तीसरे व अन्तिम दिन चार अप्रैल को मंदिर में नगर वधुएं बाबा के सामने नृत्य प्रस्तुत कर अगले जन्म में इस नारकीय जीवन से छुटकारा दिलाने की गुहार लगाएंगी। नगर वधु सबसे पहले बाबा मशाननाथ की पूरे श्रद्धाभाव से पूजा अर्चना करेंगी। इसके बाद महाश्मशान नाथ के गर्भगृह में दीप जलाने के बाद जीवन के अंधकार से छुटकारा पाने की अरजी लगाएंगी। इसके बाद दरबार में चैती व कजरी आदि गीतों पर नृत्य प्रस्तुत करेंगी। मोक्षतीर्थ पर शिवलोक का नजारा दिखेगा। अन्तिम दिन बाबा महाश्मशाननाथ की सांयकाल पंचमकार का भोग लगाकर तांत्रोक्त विधान से भव्य आरती होगी।

काशी में मान्यता है कि बाबा को प्रसन्न करने के लिये शक्ति ने योगिनी रूप धरा था। महाश्मशाननाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर के अनुसार मणिकर्णिका घाट पर यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। कहा जाता हैं कि राजा मानसिंह ने मुगल सम्राट अकबर के काल में बाबा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस दौरान उन्होंने एक संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया था। राजा मान सिंह के निमंत्रण पर कोई भी संगीतज्ञ मणिकर्णिका पर संगीतांजलि देने को तैयार नहीं हुआ। हिन्दू धर्म में हर पूजन या शुभ कार्य में संगीत जरुर होता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुखी हुए। यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगर वधुओं तक भी जा पहुंचा। तब नगर वधुओं ने डरते —डरते अपना संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि बाबा के दरबार में अगर उन्हें मौका मिलता हैं तो काशी की सभी नगर वधूएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसान को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती है। यह संदेश पाकर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और ससम्मान उन्होंने नगर वधुओं को आमंत्रित किया। तब से यह परम्परा चली आ रही है। यहां आने वाली नगर वधुओं के मन मे यह भाव आया की अगर वह इस परम्परा को निरन्तर बढ़ाती हैं तो उन्हें इस नारकीय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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