लखनऊ, 25 सितंबर (Udaipur Kiran) । फेफड़े लगातार पर्यावरणीय खतरों के संपर्क में रहते हैं, जिसमें हम जिस हवा में सांस लेते हैं उससे उसमें उपस्थित जहरीले रसायन, कण और संक्रामक एजेंट फेफडे़ को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अस्थमा की बात करें तो यह बच्चों में सबसे आम पुरानी बीमारी है, जो दुनिया भर में लगभग 14 प्रतिशत बच्चों को प्रभावित करती है और इसका प्रसार बढ़ रहा है। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा.वेद प्रकाश ने दी।
डा. वेद प्रकाश ने बताया कि दुनिया भर में, 200 करोड़ से अधिक लोग हानिकारक बायोमास धुएं के संपर्क में आते हैं, जो अक्सर इनडोर स्टोव या खराब हवादार फायरप्लेस से होता है। इसके अतिरिक्त, 100 करोड़ लोगों को बाहरी वायु प्रदूषण और तंबाकू के धुएं से जोखिम का सामना करना पड़ता है। श्वसन संबंधी बीमारी और मृत्यु के पांच प्रमुख कारणों में अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), फेफड़ों का कैंसर, श्वसन संक्रमण और तपेदिक (टीबी) शामिल हैं।
वैश्विक स्तर पर, 65 लाख से अधिक लोग सीओपीडी से प्रभावित हैं, जो मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है।
फेफड़े का कैंसर दुनिया भर में सबसे अधिक पाया जाने वाला घातक कैंसर है, जिसकी दर लगातार बढ़ रही है। निमोनिया मृत्यु का एक प्रमुख कारण बना हुआ है और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की (मृत्यु का) प्राथमिक कारण है।
फेफड़ों के रोगों की रोकथाम
धूम्रपान से परहेज करना
वायु प्रदूषकों और कुछ रसायनों के संपर्क में आने से बचना
स्वस्थ आहार लेना
नियमित जांच कराना
शारीरिक रूप से सक्रिय रहना
डा. वेद प्रकाश ने बताया कि किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग, पल्मोनरी मेडिसिन के क्षेत्र में विश्व स्तरीय सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो समाज के सबसे कमजोर वर्गों को सस्ती देखभाल प्रदान करता है।
(Udaipur Kiran) / बृजनंदन