प्रयागराज, 23 नवंबर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि सरकारी पद पर नियुक्ति के लिए केवल आपराधिक मामले में फंसाया जाना ही उम्मीदवारी को खारिज करने का वास्तविक आधार नहीं बन सकता है। दहेज के मामलों की जटिल प्रकृति को देखते हुए, न्यायालय ने माना कि जहां आरोप गंभीर नहीं थे और मिलीभगत स्थापित नहीं की जा सकी, याचिकाकर्ता को दहेज के मामले में आरोपित होने के आधार पर रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने उस मामले में जहां नियुक्ति चाहने वाला व्यक्ति मुख्य आरोपित का भाई था और दहेज के मामले में फंसा हुआ था, जस्टिस जे.जे. मुनीर ने कहा कि “समाज में प्रचलित सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए, जबकि महिलाएं अपने वैवाहिक घरों में क्रूरता का शिकार होती हैं, यह भी उतना ही सच है, और अब तक न्यायिक रूप से स्वीकार किया गया है कि मामूली या बिना किसी उल्लंघन के, पति के पूरे परिवार को या तो पुलिस को रिपोर्ट किया जाता है या असंतुष्ट पत्नी या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का आरोप लगाते हुए आपराधिक न्यायालय में लाया जाता है।
याचिका दाखिल कर याची बाबा सिंह ने चीफ इंजीनियर लघु सिंचाई लखनऊ के 16 फरवरी 2024 को पारित आदेश को चुनौती दी थी जिसके द्वारा असिस्टेंट बोरिंग टेक्नीशियन पद पर हुए चयन के बावजूद दहेज मामले में आरोपित बनाए जाने के कारण नियुक्ति पत्र देने से इंकार कर दिया गया था। याची के खिलाफ मीरजापुर की एक अदालत ने दहेज के मामले में कम्पलेन्ट केस में सम्मन जारी किया था।
हाईकोर्ट फैसले में माना कि चीफ इंजीनियर का आदेश सही नहीं है। न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता ने अपने नियोक्ताओं से कोई तथ्य नहीं छिपाया था। क्योंकि जब उसने पद के लिए आवेदन किया था तब उसके खिलाफ कोई लंबित मामला नहीं था। पुलिस आयुक्त और अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों पर भरोसा किया गया। संदीप कुमार और राम कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में यह माना गया कि वैवाहिक विवादों से उत्पन्न अपराधों के लिए, यहां तक कि मामूली अपराधों के मामले में भी, सार्वजनिक रोजगार से इनकार नहीं किया जाना चाहिए।
जस्टिस जे जे मुनीर ने कहा कि याची का आपराधिक इतिहास नहीं है। याचिकाकर्ता के परिवार के खिलाफ लगाए गए सामान्य आरोप के संबंध में, न्यायालय ने अवतार सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा किया और माना कि चूंकि याची ने कोई जानकारी नहीं छिपाई, इसलिए वह दोषी नहीं था।
आरोपों और अपराध की प्रकृति के अलावा की गई कार्यवाही की प्रकृति को देखते हुए कोर्ट ने पाया कि यह मामला याची के खिलाफ शिकायत का मामला है, जो शिकायतकर्ता के पति का भाई है। अपराध करने में उसकी कोई विशेष भूमिका नहीं है। जहां नियुक्ति से इनकार नहीं किया जाना चाहिए था। हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर मुख्य अभियंता को याची की नियुक्ति पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे