धर्मशाला, 4 सितंबर (Udaipur Kiran) । तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि जैसे ही मैं सुबह उठता हूं, मैं ध्यान करता हूं और मेरे ध्यान में मुख्य रूप से दो सिद्धांत परोपकारिता, बोधिचित्त और शून्यता होते हैं। यह सब मैंने अपने बचपन में मेरे शिक्षक से सीखा था। मुझे लगता है कि यदि वह आज जीवित होते तो मुझे शून्यता की समझ के मामले में महान गुरु नागार्जुन के बगल में बैठने में सक्षम छात्रों में से एक माना जाता।
धर्मगुरु ने कहा कि भारतीय दर्शन के विभिन्न विद्यालयों के बीच दृष्टिकोण में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उन सभी में अहिंसा समान है। मैं इस प्रथा से तब से परिचित हूं जब मैं बच्चा था। इसलिए, जब मैं अपने दैनिक जीवन में अहिंसा का पालन करता हूं, तो मैं इसे अपने दोस्तों के साथ भी साझा करता हूं। मैं उन्हें अहिंसा को अपने जीवन में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं। धर्मगुरु ने यह विचार बुधवार को उनसे मिलने आये फिलीपींस के मनीला स्थित रेमन मैग्सेसे अवार्ड फाउंडेशन (आरएमएएफ) के न्यासी बोर्ड के सदस्यों के बीच साझा किए।
धर्मगुरु ने कहा कि जब मैं देखता हूं कि आज दुनिया कैसी है, तो मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अहिंसा का अभ्यास करें। हर कोई दुनिया में शांति देखना चाहता है, हम दुनिया में शांति के बारे में बात करते हैं और अगर हमें इसे हासिल करना है, तो हमें अहिंसा के मूल्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।
गौरतलब है कि फिलीपींस के मनीला स्थित रेमन मैग्सेसे अवार्ड फाउंडेशन (आरएमएएफ) के न्यासी बोर्ड ने परम पावन की उपस्थिति में पुरस्कार के पिछले प्राप्तकर्ताओं के बारे में ग्रेटनेस ऑफ स्पिरिट नामक सात खंडों की श्रृंखला शुरू यह प्रकाशन पुरस्कार की स्थापना की 65वीं वर्षगांठ मना रहा है। रेमन मैग्सेसे अवार्ड फाउंडेशन की अध्यक्ष सुज़ाना बी. अफान बुधवार को मैक्लोडगंज में परमपावन दलाई लामा की उपस्थिति में उनके आवास पर पुरस्कार के पिछले प्राप्तकर्ताओं के बारे में ग्रेटनेस ऑफ स्पिरिट नामक सात खंडों की श्रृंखला का शुभारंभ किया।
मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली सख्शियत थे दलाई लामा
गौर हो कि वर्ष तिब्बत से 1959 में भारत पंहुचे परमपावन को यह पुरस्कार प्रदान किया गया। धर्मगुरु यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति थे और यह उन्हें प्राप्त होने वाला पहला अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार था।
(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया