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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य को दिये निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट

-सभी कर्मचारियों से अलग रह रहे जीवनसाथी को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान को लेकर गाइडलाइन तैयार करने का निर्देश

प्रयागराज, 16 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव और उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ के नियुक्ति और कार्मिक विभाग के प्रमुख सचिव को अपने कर्मचारियों के अलग रह रहे जीवनसाथी को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के लिए उचित नियम,मानदंड व दिशा निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया है।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की पीठ ने यह निर्देश नीरज कुमार ठाकरे उर्फ पिन्टू की अपर प्रधान न्यायाधीश फेमिली कोर्ट की अपील पर पारित किया है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की गाइडलाइंस से अनावश्यक मुकदमा से बचा जा सकता है।

अपीलकर्ता भारतीय सेना में लांस नायक-सिपाही है। जिसका वेतन 50,000 रुपये प्रति माह है। वैवाहिक विवाद में, सेना अधिनियम के तहत सेना के आदेश के तहत सेना कर्मियों की पत्नियों और बच्चों को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के अनुसार अपीलकर्ता के वेतन का 22 प्रतिशत कटौती पत्नी को देय थी। हालांकि, पति के वेतन से सीधे कटौती की जा रही थी, लेकिन पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत तलाक की कार्यवाही के लम्बित रहने के दौरान भरण-पोषण के लिए आवेदन किया। प्रतिवादी-पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत भी कार्यवाही शुरू की, जिसमें उसने फिर से भरण-पोषण की मांग की।

इटावा के पारिवारिक न्यायालय के अपर प्रधान न्यायाधीश ने दो अलग-अलग आदेशों के तहत पत्नी को 5000 रुपये और 11000 रुपये प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया। इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

हाईकोर्ट ने सेना कर्मियों के लिए बने ऐसे नियमों के अस्तित्व की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अंतरिम भरण-पोषण भत्ते के लिए कोई और आदेश देने की आवश्यकता नहीं हो सकती है, जब तक कि कटौती (सेवा कानून के तहत) न्यायिक रूप से स्वीकृत मानदंडों से कम न हो या विशेष तथ्यों में अपर्याप्त न दिखाई जाए।

कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण भत्ता स्रोत पर (मासिक वेतन-पेंशन भुगतान से) काटा जाए और आवेदक को, नियोक्ता द्वारा खाते में सीधे भुगतान किया जाए। साथ ही, जहां आवेदक पति या पत्नी और बच्चे प्रतिवादी पति या पत्नी के आश्रितों के रूप में अन्य लाभों के हकदार हैं, उस प्रतिवादी पति या पत्नी से उचित रियायत मांगी जा सकती है।

न्यायालय ने कहा कि जहां पति या पत्नी के सेवा कानून में भरण-पोषण के लिए ऐसा कोई नियम नहीं दिया गया है, वहां भरण-पोषण की राशि पति की आय के वेतन या परिवार की आय (पति और पत्नी के वेतन का योग) का 1/4 या 25 प्रतिशत होनी चाहिए।

न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य के सभी पारिवारिक न्यायालयों के प्रधान न्यायाधीशों को निर्देश जारी किया कि वे रजनेश बनाम नेहा एवं अन्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार अंतरिम और अंतिम भरण-पोषण के सम्बंध में निर्धारित कानून का कड़ाई से पालन करें।

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) को आगे निर्देश जारी किए गए कि वे “सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (डीएलएसए) के साथ कार्यशालाएं आयोजित करने पर विचार करें, ताकि सामान्य रूप से वादियों और वकीलों (परिवार न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही में शामिल) के बीच, विशेष रूप से अंतरिम भरण-पोषण भत्ते के सम्बंध में कानून की आवश्यकताओं और प्रक्रिया के बारे में अधिक जागरूकता पैदा की जा सके।“

न्यायालय ने भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के सचिव और उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ के नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग के प्रधान सचिव को अपने कर्मचारियों के अलग रह रहे जीवनसाथी को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के लिए उचित नियम, मानदंड, दिशा निर्देश तैयार करने का भी निर्देश दिया। कहा कि इस प्रकार तैयार किए गए नियमों को सभी पारिवारिक न्यायालयों, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान को 31 मार्च 2025 तक सूचित किया जाए।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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