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साेमवती अमावस्या पर हाेगा सर्व कार्य सिद्ध याेग

जयंती देवी मंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री।

जींद, 28 दिसंबर (Udaipur Kiran) । वर्ष 2024 की अंतिम सोमवती अमावस्या 30 दिसंबर को होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार सोमवती अमावस्या पौष माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पड़ेगी। अमावस्या 30 दिसंबर को सुबह 4:01 बजे से आरंभ होगी और 31 दिसंबर को सुबह 3:56 बजे समाप्त हो जाएगी। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर सोमवती अमावस्या 30 दिसंबर यानी सोमवार को मनाई जाएगी। इस बार सोमवती अमावस्या के दिन वृद्धि योग सुबह से रात 8:32 बजे तक रहेगा। जिसके बाद ध्रुव योग शुरू हो जाएगा। इस दिन मूल नक्षत्र सुबह से रात 11:57 बजे तक रहेगा और इसके बाद पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र आरंभ हो जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक ध्रुव योग बेहद फायदेमंद होता है और श्रद्धालु के कार्य सिद्ध होते हैं।

स्नान और दान का शुभ मुहूर्त

जयंती देवी मंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री ने शनिवार काे बताया कि 30 दिसंबर को ब्रह्ममुहूर्त प्रात: 5:24 से 6:19 बजे तक रहेगा। इसे स्नान के लिए बहुत ही शुभ समय माना जाता है। इसके अलावा सूर्योदय के समय भी स्नान कर सकते हैं। स्नान के उपरांत दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे जीवन की कई मुश्किलें कम हो जाती हैं। वहीं इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए उपवास रखती हैं। इस दिन पूजा के लिए विशेष पंचांग देखने की आवश्यकता नही होती है। स्नान-दान के पश्चात दिन में 12:03 से 12:45 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार सोमवती अमावस्या का पवित्र पर्व तब मनाया जाता है जब अमावस्या तिथि सोमवार के दिन पड़ती है। इसे सोमवती अमावस्या या सोमवारी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दौरान श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद पा सकते हैं। जिससे दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत के पालन से सौभाग्य और सुख.समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर दान करने का विशेष महत्व भी होता है।

सोमवती अमावस्या का महत्व

सोमवती अमावस्या के दिन दिन पितरों की शांति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कार्य करने का भी विशेष महत्व है। पवित्र स्नान और दान से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं व्रत रखने से और शिव, पार्वती की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। सुहागिन स्त्रियां यह व्रत अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। सोमवती अमावस्या पितरों को समर्पित है। इस दिन पर लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं। अपने पितरों के नाम से विभिन्न प्रकार के पूजा अनुष्ठान करते हैं। जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अमावस्या तिथि पर श्रद्धालु यह करें

अमावस्या तिथि पर सुबह जल्दी उठें। अमावस्या पर पितरों का पिंडदान करें, इससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करें। इस दिन शादी या सगाई जैसे शुभ कार्यक्रमों को करने व तय करने से भी बचें। इस दिन नए कपड़े या जूते खरीदने से बचें। इस तिथि पर नए वाहन और घर खरीदने से बचें। इस मौके पर धार्मिक कार्यों से जुड़ें। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन करने से बचें। इस तिथि पर जरूरतमंदों को भोजन और कपड़ों का दान करें। भोजन, गर्म कपड़े, तिल, गुड़, घी, आदि चीजों का दान करें। इस दिन सात्विकता का पालन करें।

सोमवती अमावस्या का महत्व

शनिवार को जानकारी देते हुए जयंती देवी मंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री ने बताया कि पिंडतारक तीर्थ के संबंध में किदवंती है कि महाभारत युद्ध के बाद पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पांडवों ने यहां 12 वर्ष तक सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा में तपस्या की। बाद में सोमवती अमावस के आने पर युद्ध में मारे गए परिजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया। तभी से यह माना जाता है कि पांडू पिंडारा स्थित पिंडतारक तीर्थ पर पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है। महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या पर यहां पिंडदान करने का विशेष महत्व है। यहां पिंडदान करने के लिए विभिन्न प्रांतों के लोग श्रद्धालु आते हैं।

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(Udaipur Kiran) / विजेंद्र मराठा

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