Uttrakhand

देश विदेशों के पर्यटकों के लिए खुले  गंगोत्री नेशनल पार्क के चारों गेट

गर्तांगली में रोमांच के सफर को हो जाइए तैयार
गर्तांगली में रोमांच के सफर को हो जाइए तैयार

उत्तरकाशी, 1 अप्रैल (Udaipur Kiran) । गंगोत्री नेशनल पार्क के चाराें गेट आज पर्यटकाें के लिए खेल दिए गए हैं। वहीं रगंगोत्री-गौमुख ट्रेक मार्ग इस बार अधिक हिमपात होने से जगह जगह भूस्खलन हुआ है, जिस को अभी दो सप्ताह के इंतजार करना पड़ सकता है। वही गंगोत्री नेशनल पार्क उप निर्देशक हरीश नेगी ने बताया कि गंगोत्री नेशनल पार्क के चारों गेटों को देश विदेश के पर्यटकों के लिए खोल दिए गए है। गौमुख ट्रेक मार्ग का सुदारीकरण कार्य चल रहा है। गंगोत्री नेशनल पार्क में पर्यटक नेलांग घाटी , ग्रतांग गली , गौमुख ट्रेक , सात ताल के सैर सपाटा कर सकते है पर्यटक । वहीं प्रदीप सिंह बिष्ट रेंजर गंगोत्री नेशनल पार्क ने बताया कि इस साल देश विदेशों से पर्यटक पिछले साल की भांति इस बार अधिक आने की उम्मीद जताई जा रही है ।इस बार पर्यटक खूबसूरत गंगोत्री नेशनल पार्क का दीदार करेंगे । गंगोत्री गौमुख ट्रेक मार्ग इस बार अधिक मात्रा में हिमपात होने से जगह जगह भूस्खलन हुआ है जिस को अभी दो सप्ताह के अंतराल में ठीक करने का प्रयास गंगोत्री नेशनल पार्क कर रहा है ।

गर्तांगली का राेमांच भरा सफर भी कर पाएंगे पर्यटक

उत्तराखंड की वो सीढ़ियां जो भारत और चीन के बीच व्यापार की कहानी को तो याद दिलाती हैं हीं, साथ ही वो भारत और चीन के बीच हुए युद्ध की भी यादें ताजा करती हैं। इसे दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में भी शुमार किया जाता है। उत्तरकाशी में स्थित गरतांग गली का निर्माण 140 साल पहले हुआ था। इसी रास्ते से भारत और तिब्बत के बीच व्यापार हुआ करता था। इस पुल को बचाने की कवायद जारी है। प्राचीन धरोहरें उत्तराखंड की पहचान हैं। उत्तराखंड की सालों पुरानी काष्ठकला के दर्शन करने हों तो उत्तरकाशी चले आइये, यहां की गरतांग गली को देखकर जिस गर्व और रोमांच का अनुभव आप करेंगे, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इसे गरतांग गली कहा जरूर जाता है, लेकिन वास्तव में ये लकड़ी और लोहे से तैयार सालों पुराना पुल है। गरतांग गली जाड़गंगा के पास बना पुल है, जिसके अस्तित्व को बचाए रखने की कोशिश की जा रही है।

ये उत्तरकाशी से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 150 मीटर लंबे इस पुल पर लकड़ी की सीढ़ियां बनी हैं। गरतांग गली का निर्माण एक सीधे पहाड़ को काटकर किया गया है। माना जाता है कि इसे 140 साल पहले बनाया गया था। उस वक्त तिब्बत और भारत के बीच व्यापार गरतांग गली के जरिए होता था। गरतांग गली बनने से पहले व्यापारियों के घोड़े-खच्चर पहाड़ की ऊंचाई से नीचे गिर जाते थे। परेशानी बढ़ने लगी तो व्यापारियों ने अफगानी पठानों से गरतांग गली का निर्माण कराया। इस दुर्गम रास्ते पर भारत सरकार का ध्यान उस वक्त गया, जब 1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध छिड़ गया। कहा जाता है कि सन् 1962 में भारतीय सैनिकों ने अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर तक पहुंचने के लिए इसी दुर्गम रास्ते का इस्तेमाल किया था।

(Udaipur Kiran) / चिरंजीव सेमवाल

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