HimachalPradesh

अरलू के अजय ने बांस से शुरू किया स्टार्टअप, 60 हजार रुपए प्रति माह कमाई

अजय कुमार।

ऊना, 18 मार्च (Udaipur Kiran) । अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा, सीखने की ललक और अपने हुनर से समाज को नई दिशा देने की चाहत हो, तो सफलता केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरे समाज को प्रेरित और लाभान्वित करती है। ऊना जिले के बंगाणा उपमंडल की अरलू खास पंचायत के दगड़ूं गांव के 43 वर्षीय अजय ने इसी सोच के साथ न केवल अपने जीवन में बांस के सुुंदर सामान से सफलता की सजावट पाई, बल्कि गांव की अनेक महिलाओं को भी आत्मनिर्भरता की राह दिखाई। सोशल मीडिया का जीवनोपयोगी स्किल सीखने में कितना सदुपयोग हो सकता है, अजय की सफलता की कहानी इस बात की भी मिसाल है।

उन्होंने यूट्यूब का उपयोग नया हुनर सीखने के लिए किया। बांस की हस्तनिर्मित सजावटी एवं उपयोगी वस्तुएं बनाकर उन्होंने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया बल्कि जागृति बैंबू क्राफ्ट का बैनर खड़ा कर इसके जरिए कई अन्य लोगों को भी आजीविका का साधन उपलब्ध कराया। उनकी मेहनत, नवाचार और सीखने की अदम्य इच्छाशक्ति ने उन्हें सफलता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। आज वे हर महीने 50 से 60 हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं और कई महिलाओं को भी आर्थिक सशक्तिकरण की राह दिखा रहे हैं। उनकी सफलता सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बनने के साथ ही पर्यावरणपूरक जीवनशैली अपनाने और प्राकृतिक उत्पाद उपयोग में लाने की प्रेरक कहानी भी है।

यूट्यूब से मिली सीख से बदला जीवन

अजय बताते हैं कि उनका सफर बेहद रोचक रहा है। होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद वे 2007 में बद्दी की एक कंपनी में नौकरी करने लगे। वहां 2012 तक काम करने के बाद वे बंगाणा लौट आए और शिक्षा क्षेत्र से जुड़ गए। 2017 में उन्होंने एक हर्बल कंपनी की एजेंसी लेकर व्यवसाय शुरू किया, लेकिन साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान काम ठप हो गया। घर पर खाली समय में उन्होंने यूट्यूब से कुछ नया सीखने का निर्णय लिया। वहां उन्होंने बांस से उत्पाद बनाने के वीडियो देखे और उनमें रुचि जागी। धीरे-धीरे उन्होंने इस कला में दक्षता हासिल की और इसे व्यवसाय में बदलने का फैसला किया और यहीं से जागृति बैंबू क्राफ्ट की उत्पत्ति हुई।

पहला उत्पाद उन्होंने टेबल पर रखे जाने वाले तिरंगे झंडे का बेस बनाया और बंगाणा के तत्कालीन बीडीओ को दिखाया। उनकी सराहना से अजय का आत्मविश्वास बढ़ा। इसके बाद डीसी ऊना और डीआरडीए से संबल मिला। नाबार्ड के 6 महीने के प्रोजेक्ट में काम करने का अवसर मिला। इस परियोजना के तहत 25 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया। डीआरडीए और नाबार्ड के सहयोग से अजय को प्रदेश के बड़े मेलों में स्टॉल लगाने की सुविधा मिली, जिससे उनके व्यवसाय को गति मिली। हाल ही में मंडी में आयोजित शिवरात्रि मेले और कुल्लू के गांधी शिल्प बाजार में उन्होंने 10 दिनों में 50 हजार रुपये से अधिक का कारोबार किया। इसके अलावा उन्होंने बंगाणा में एक स्थायी आउटलेट भी स्थापित किया है और अब बिक्री के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के उपयोग को लेकर प्रयास में हैं।

अजय बताते हैं कि जिला प्रशासन ऊना ने उनके हस्तनिर्मित उत्पादों को अधिक परिष्कृत रूप देने के लिए करीब 2 लाख रुपये की मशीनरी उपलब्ध कराई, जिससे उन्हें अपने काम में बड़ी सहूलियत मिली। ग्रामीण विकास विभाग के निदेशक राघव शर्मा ने भी उनके चुनींदा उत्पादों को विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रदर्शित करने का आश्वासन दिया है। इससे पहले भी, जब राघव शर्मा ऊना के उपायुक्त थे, तब उन्होंने अजय को प्रोत्साहन और अवसर प्रदान किए, जिससे उनके व्यवसाय को नई ऊंचाइयां मिलीं।

अजय की पत्नी पूजा उनके व्यवसाय में कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। वे बताती हैं कि वे हर दिन कुछ नया सीखने और उसे व्यवसाय में लागू करने के लिए तत्पर रहती हैं। ये एक तरह से वर्क फ्रॉम होम ही है, पति पत्नी घर पर हैं, तो दोनों बेटों जीतेश और बवेश, जो चौथी और पांचवीं कक्षा में पढ़ते हैं, उन्हें पढ़ाने का भी समय मिल जाता है।

उपायुक्त जतिन लाल का कहना है कि मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू का इस पर बड़ा जोर है कि ग्रामीण युवा अपना काम-धंधा शुरू करने में आगे आएं, वे रोजगार देने वाले बनें और उन्हें इसमें सरकार की ओर से पूरी मदद मिले। जिला प्रशासन इसे लेकर प्रतिबद्ध है और तत्परता से काम कर रहा है। बैंबू क्राफ्ट में अजय की सफलता सभी के लिए प्रेरणादायक है। हम हरसंभव मदद के साथ ही उनके ज्ञान का उपयोग अन्यों को प्रशिक्षित करने में भी कर रहे हैं।

—————

(Udaipur Kiran) / विकास कौंडल

Most Popular

To Top