West Bengal

राजनीतिक बंदियों की सुध नहीं ले रहा प्रशासन, खाने में प्रोटीन की कमी और किताबों का अभाव –एपीडीआर का आरोप

एपीडीआर

कोलकाता, 26 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । बर्दवान जिला जेल में बंद माओवादी नेता अर्णब दाम को पीएचडी करने की अनुमति मिली है, लेकिन उचित पढ़ाई सामग्री और पौष्टिक भोजन की कमी के चलते वे अपनी पढ़ाई ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। मानवाधिकार संगठन एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (एपीडीआर) ने यह आरोप लगाया है।

एपीडीआर के मुताबिक, अर्णब और उनके साथ दो अन्य राजनीतिक बंदियों, धृतिरंजन महतो और चूनाराम बास्के को उचित भोजन नहीं मिल रहा है। एपीडीआर का कहना है कि इन बंदियों को खाने में अंडा नहीं दिया जाता और प्रोटीन युक्त भोजन की कमी है।

शनिवार को एपीडीआर के तीन प्रतिनिधि जयश्री पाल, कोयल गांगुली और देवाशीष नंदी बर्दवान केंद्रीय जिला जेल का दौरा करने पहुंचे। जयश्री पाल ने कहा कि बंदियों को पैरोल नहीं मिल रही है और उनके खाने में पोषक तत्वों की कमी है। उन्होंने कहा कि इन लोगों को अंडे की जगह दाल दी जाती है, जो पोषण की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अर्णब दाम, जो पीएचडी कर रहे हैं, को पढ़ाई के लिए आवश्यक किताबें नहीं मिल रही हैं क्योंकि जेल में उचित लाइब्रेरी नहीं है।

पश्चिम मेदिनीपुर के शिल्दा में ईएफआर कैंप पर हमले के मुख्य आरोपित अर्णब दाम, जेल में रहते हुए स्नातक, स्नातकोत्तर और ‘सेट’ परीक्षा पास कर चुके हैं। इतिहास में शोध के लिए उन्हें बर्दवान विश्वविद्यालय में पीएचडी का अवसर मिला है। जुलाई में जेल में स्थानांतरित होने के बाद से ही वे बर्दवान विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं। तृणमूल नेता कुणाल घोष के प्रयासों से उनकी दाखिले की प्रक्रिया पूरी हुई। लेकिन एपीडीआर का आरोप है कि जेल में उनके अध्ययन के लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है।

एपीडीआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जेल में बंदियों की संख्या अधिक है और जगह की कमी है, जिसके कारण उन्हें बेहद तंग स्थिति में रहना पड़ता है। इसके कारण वहां त्वचा रोगों का खतरा भी बढ़ गया है।

संगठन ने कहा, खाने का स्तर भी खराब है, अंडे के बजाय हर दिन दाल दी जाती है। प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की कमी है और रात के समय किसी बंदी के बीमार होने पर इलाज का उचित प्रबंध नहीं है।

जेल अधीक्षक पृथ्वी सिंहा ने इस संबंध में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, इन तीनों को राजनीतिक बंदी नहीं कहा जा सकता क्योंकि तीनों ही शिल्दा-कांड में दोषी ठहराए गए हैं। उन्होंने भोजन की गुणवत्ता को लेकर एपीडीआर के आरोपों को निराधार बताया।

एपीडीआर का कहना है कि राज्य सरकार माओवादियों को मुख्यधारा में लाने के लिए सक्रिय है, लेकिन जेलों में बंद इन लोगों के लिए उचित सुविधा नहीं होने से उनकी पढ़ाई और सेहत प्रभावित हो रही है।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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