जम्मू, 15 सितंबर (Udaipur Kiran) । भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अरुण गुप्ता (चुनाव मीडिया सेंटर इंचार्ज) ने कहा हैं कि अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढ़ियों (शेख अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला) ने गुजजर समुदाय का वोट पाने के लिए उनका शोषण किया, लेकिन किसी ने भी उन्हें सशक्त बनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। अब उमर जंगल अधिकारों के बारे में झूठ बोलकर उन्हे गुमराह कर रहे हैं।
गुप्ता ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अनुच्छेद 370 की कुल्हाड़ी से गुजरों की जड़ें काट दी थीं। नेशनल कांफ्रेंस अनुच्छेद 370 की बहाली की बात कर रही है और गुजर समुदाय को फिर से उस दौर में धकेलना चाहती है, जब उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में मान्यता नहीं थी और उन्हें किसी भी प्रकार के आरक्षण का लाभ नहीं मिलता था। उन्होंने कहा अनुच्छेद 370 के कारण 2006 का वन अधिकार कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो सका था। हालांकि, अगस्त 2019 में जब अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया, जिसने गुर्जर समुदाय के अधिकारों का हनन किया था, तो गुर्जरों को वे अधिकार मिले जो भारतीय संविधान के तहत सुनिश्चित किए गए हैं। अरुण गुप्ता ने बताया कि यह जम्मू-कश्मीर का संविधान था जिसने गुर्जरों के उन अधिकारों को रोका, जो केंद्रीय कानूनों के तहत मिल सकते थे।
अरुण गुप्ता ने घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि उमर अब्दुल्ला ने जनवरी 2009 में कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री का पद संभाला और 2014 के अंत तक इस पद पर रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान गुर्जरों को जंगल अधिकार नहीं दिए। उन्होंने कहा कि उमर अब्दुल्ला झूठ बोल रहे हैं और गुर्जरों को अधिकार देने के बारे में झूठे दावे कर रहे हैं। गुर्जरों को ये अधिकार स्वतः ही मिले जब अनुच्छेद 370 की दीवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने तोड़ा, उन्होंने आगे कहा। यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर की विधान सभा में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए नौ सीटें आरक्षित की गई हैं। इस राजनीतिक आरक्षण को अब्दुल्ला परिवार की किसी भी पीढ़ी, चाहे शेख अब्दुल्ला हों, फारूक अब्दुल्ला या उमर अब्दुल्ला, ने गुर्जरों को नहीं दिया। अरुण गुप्ता ने कहा कि अब्दुल्ला परिवार के किसी भी मुख्यमंत्री ने गुर्जरों को सशक्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
अरुण गुप्ता ने आगे कहा कि गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के तहत 19 अप्रैल 1991 को शामिल किया गया, जब अब्दुल्ला परिवार में से कोई भी सत्ता में नहीं था। अप्रैल 1991 तक एसटी का दर्जा न मिलना शेख अब्दुल्ला और फारूक अब्दुल्ला की दो पीढ़ियों की विफलता थी। एसटी का दर्जा मिलने के बाद, गुर्जर समुदाय ने तेजी से प्रगति की क्योंकि उन्हें आरक्षण के लाभ मिले। एसटी का दर्जा मिलने के बाद गुर्जर समुदाय के लोगों को शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण मिला, उन्होंने आगे कहा।
गुप्ता ने कहा कि उमर अब्दुल्ला गुर्जरों को गुमराह कर रहे हैं जब वे यह दावा करते हैं कि विधानसभा चुनावों के बाद उन्हें अधिकार देंगे। उनके दादा, उनके पिता और खुद उमर ने अपने निरंतर शासन के दौरान गुर्जर समुदाय को सभी अधिकारों से वंचित रखा। मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अगर उमर चाहते तो गुर्जरों को जंगल अधिकार देने से कोई चीज उन्हें नहीं रोक सकती थी। गुर्जर समुदाय के सभी अधिकारों से वंचित रखने के जिम्मेदार खुद उमर हैं।
उन्होंने कहा अब गुज्जर भाजपा के पक्ष में वोट देने का संकल्प ले चुके हैं, उस पार्टी को जिसने उन्हें राजनीतिक आरक्षण दिया। यह उमर के लिए एक बड़ी परेशानी का कारण है, जो गुर्जरों के सशक्तिकरण का श्रेय भाजपा को देना नहीं चाहते, गुप्ता ने कहा। गुप्ता ने आगे कहा कि उमर की दादी बेगम अकबर जहां को ‘मादर-ए-महरबान’ कहा जाता था और अब्दुल्ला परिवार ने उन्हें गुर्जर महिला की बेटी के रूप में पेश किया ताकि वोट हासिल किए जा सकें। फिर भी, उन्होंने कभी गुर्जरों को सशक्त बनाने के लिए कुछ नहीं किया और चाहते थे कि यह समुदाय शिक्षा से दूर रहे और पिछड़ा रहे। गुप्ता ने कहा कि गुर्जर अक्सर चुनावों में एनसी को वोट देते थे लेकिन इस पार्टी ने उन्हें कभी वे अधिकार नहीं दिए जो भारतीय संविधान के तहत उपलब्ध थे।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा