
नैनीताल, 20 मई (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में शादी योग्य युवाओं की शादी न हो पाने की समस्या गंभीर होती जा रही है। लड़कियां बड़े परिवार और पहाड़ी गांवों के बजाय छोटे परिवार, मैदानी क्षेत्रों जैसे हल्द्वानी, देहरादून, रुद्रपुर, काशीपुर जैसे मैदानी शहरों में घर और सरकारी नौकरी वाले युवाओं को प्राथमिकता दे रही हैं। यह स्थिति इसलिये भी अधिक चिंताजनक है कि राज्य में लिंगानुपात 984 यानी ठीक-ठाक है।
बेरोजगारी और सामाजिक दबाव
पर्वतीय क्षेत्रों में बेरोजगारी, सीमित आर्थिक अवसर और पलायन ने युवाओं की शादी की राह मुश्किल कर दी है। 35 से 40 वर्ष की आयु पार कर चुके कई युवक कुंवारे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अनिल जोशी के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी और आय की कमी और बदलती मान्यताएं लड़कों की शादी में बाधा बन रहे हैं। एक 38 वर्षीय युवक ने बताया कि वह शादी न होने से कम, बल्कि सामाजिक टिप्पणियों से अधिक परेशान है। लोग जानबूझकर शादी, आय, और भविष्य पर सवाल उठाते हैं, जिससे मानसिक तनाव बढ़ता है।
लड़कियों की बदलती प्राथमिकताएं
समाजशास्त्री डॉ. रीतिका पंत के अनुसार, बढ़ते शैक्षिक स्तर के साथ शिक्षित लड़कियां अब आर्थिक स्थिरता, शहरी सुविधाएं और छोटे परिवार को तरजीह देती हैं। अब पर्वतीय गांवों में कृषि, चारा-पत्ती के लिये व गाय-बच्छियों के साथ जंगल जाना, खेतों में खाद डालना व अन्य कृषि कार्य कराना किसी को पसंद नहीं है। पहाड़ में अपेक्षाकृत बड़े घर के बावजूद लोग हल्द्वानी-रुद्रपुर, काशीपुर जैसे मैदानी शहरों में एक-दो कमरों के किराये के या अपने घरों में रहने को तैयार हैं।
विवाह के प्रति बदलता दृष्टिकोण
शादी के बाद बढ़ते पारिवारिक विवाद, तलाक के मामले और आर्थिक जिम्मेदारियों ने भी कई युवकों को विवाह से विमुख कर दिया है। एक युवक ने बताया कि वह अब शादी नहीं करना चाहता, लेकिन माता-पिता के बुढ़ापे और एकलौते होने की जिम्मेदारी उसे चिंतित करती है। वह भविष्य में अकेलेपन और सामाजिक दबाव की आशंका से भी ग्रस्त है। मनोवैज्ञानिक डॉ. संजय मेहता का कहना है कि शादी न करने का निर्णय व्यक्तिगत है, लेकिन सामाजिक समर्थन और आर्थिक स्थिरता के साथ यह कोई सजा नहीं बनता।
एक पीड़ित की सोशल मीडिया पोस्ट
इस संबंध में एक युवक की पोस्ट सोशल मीडिया पर चर्चा में है, जिसमें उसने लिखा है: शादियों का सीजन शुरू हो चुका है लेकिन लड़कों की शादी न हो पाने की समस्या अब एक बड़ा रूप ले चुकी है। हर गांव कस्बे में 35 की उम्र पार कर चुके बहुत लड़के कुंवारे ही हैं। मेरी उम्र भी 38 साल हो चुकी है और में अपनी शादी न हो पाने से नहीं लेकिन लोगों की बातों से परेशान हूं। हर दूसरा आदमी जान बूझकर सवाल करता है कि शादी कब कर रहे हो… अभी तक क्यों नहीं की… कहीं बातचीत करनी चाहिए थी.. कितना कमा लेते हो… नेपाल से कर लो… वगैरा वगैरा। बेरोजगारी और बढ़ती उम्र और दिन-दिन शादी के नाम पर होते उत्पात को, शादी के बाद के झगड़ों और विवादों देखते हुए में अब शादी करना नहीं चाहता हूं। माता पिता बूढ़े हो चले हैं। मैं घर का इकलौता लड़का हूं, बुढ़ापे में क्या होगा? कल क्या होगा जैसे सवालों से परेशान भी हूं। अगर में शादी न करूं तो क्या भविष्य में यह निर्णय कोई सजा भर बन के रह जाएगा या सब ठीक ही रहेगा।
समाधान की आवश्यकता
कुमाऊं विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डीएस बिष्ट ने सुझाव दिया कि युवाओं के लिए परामर्श केंद्र और सामाजिक जागरूकता अभियान शुरू किए जाएं। यह समस्या न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी चुनौती बन रही है, जिसके लिए व्यापक नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है।
(Udaipur Kiran) / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी
