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एक शिक्षक बन रहा दिव्यांग बच्चों का सहारा 

एक शिक्षक बन रहा दिव्यांग बच्चों का सहारा

उदयपुर, 3 दिसंबर (Udaipur Kiran) ।

उदयपुर जिले के झाड़ोल और कोटड़ा जैसे सुदूर क्षेत्रों में विकलांग बच्चों के लिए चिकित्सा और शिक्षा की सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में एक शिक्षक इन बच्चों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर काम कर रहे हैं।

यह शिक्षक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रेलवे ट्रेनिंग उदयपुर के दुर्गाराम मुवाल हैं। दुर्गाराम न केवल इन बच्चों की जानकारी जुटाते हैं, बल्कि उनके परिवार की पृष्ठभूमि समझकर अस्पताल तक लाने और इलाज की प्रक्रिया पूरी करने में भी व्यक्तिगत रूप से सहायता करते हैं। जिन बच्चों का इलाज संभव नहीं होता, उनके लिए दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का कार्य करते हैं। उनकी यह पहल न केवल चिकित्सा, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी इन बच्चों के जीवन को नया आयाम दे रही है।

कोटड़ा तहसील के मेड़ी गांव के किशनलाल (11) और सोमेश्वर (9) दोनों हाथ और पैरों से दिव्यांग हैं। न तो वे बिना सहारे खड़े हो पाते हैं और न ही चल पाते हैं। उनके हाथों के पंजे भी पूरी तरह नहीं खुलते। इनके पिता मानसिक विकलांग और मां मानसिक रूप से कमजोर हैं। आर्थिक तंगी और सुविधाओं के अभाव के कारण बच्चे शिक्षा और चिकित्सा से वंचित थे।

दुर्गाराम को उमरिया की आशा सहयोगिनी लीला खेर से इन बच्चों की जानकारी मिली। उन्होंने तुरंत बच्चों को महाराणा भूपाल चिकित्सालय में भर्ती कराया। फिजियोथैरेपी के माध्यम से इलाज कराया और विकलांग प्रमाण पत्र बनवाया। इसके बाद दोनों भाइयों को उदयपुर के एक आवासीय विद्यालय में दाखिला दिलवाया, जहां वे पढ़ाई कर रहे हैं और समय-समय पर चिकित्सा लाभ भी ले रहे हैं। दुर्गाराम इन बच्चों को अपनी गोद या पीठ पर उठाकर अस्पताल लाने-ले जाने तक का काम खुद करते हैं।

कोटड़ा की बड़ली पंचायत के 7 वर्षीय अमित कुमार जन्म से ही नेत्रहीन है। चार साल पहले माता-पिता की मृत्यु के बाद वह अपने दादा-दादी के साथ रह रहा था। गरीबी और नेत्रहीनता के कारण उसका जीवन कठिन हो गया। दुर्गाराम ने बड़ली के केशर सिंह लऊर की मदद से अमित को उदयपुर लाकर अलख नयन अस्पताल में जांच करवाई।

जांच में पता चला कि उसकी एक आंख जन्म से नहीं है और दूसरी आंख का कॉर्निया खिसका हुआ है, जिसका इलाज संभव नहीं। दुर्गाराम ने अमित को एक विशेष स्कूल में दाखिला दिलवाया, जहां वह अन्य नेत्रहीन बच्चों के साथ पढ़ाई कर रहा है।

कोटड़ा के कागवास गांव की 3 वर्षीय सपना ने दो साल पहले आंखों की बीमारी के चलते आंखों की रोशनी खो दी। जांच में पता चला कि समय पर इलाज मिलने से उसकी दृष्टि बचाई जा सकती थी। बच्ची के कोई सरकारी दस्तावेज नहीं थे, जिससे इलाज और सहायता में कठिनाई हुई। दुर्गाराम ने अब उसके दस्तावेज बनवाने की प्रक्रिया शुरू की है और दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के बाद सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की योजना बनाई है।

दुर्गाराम मुवाल अब तक लगभग 50 दिव्यांग बच्चों का इलाज और उनके प्रमाण पत्र बनवाकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिला चुके हैं। उनकी इस नेक पहल में लीला खैर, हरीश लऊर, अर्जुन गमार और हेमलता लोहार जैसे सहयोगी भी जुड़ चुके हैं।

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(Udaipur Kiran) / सुनीता

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