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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत पर है लोकतांत्रिक संस्थाओं को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने की जिम्मेदारी : लोक सभा अध्यक्ष

धर्मशाला के तपोवन विधानसभा भवन में अपना संबोधन देते हुए लोकसभा अध्यक्ष।
संयुक्त चित्र में लोकसभा अध्यक्ष के साथ गणमान्य।

धर्मशाला, 30 जून (Udaipur Kiran) । लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसाधनों के प्रबंधन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे नवाचारों को अपनाकर विधानमंडलों को अधिक कुशल बनाने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि विधानमंडलों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं, नवाचारों और प्रौद्योगिकी को साझा करने से लोकतांत्रिक संस्थाएं सशक्त होती हैं। इस बात का उल्लेख करते हुए कि एआई के प्रयोग से विधायी निकाय जनता के और करीब आएंगे तथा लोगों की अपेक्षाओं को बेहतर ढंग से पूरा कर पाएंगे।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने यह विचार सोमवार को धर्मशाला के तपोवन विधानसभा भवन में आयोजित किए जा रहे दो दिवसीय राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सीपीए भारत क्षेत्र जोन-2 के वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्यातिथि सदन में मौजूद सदस्यों को सम्बोधित करते हुए रखे।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि यदि प्रत्येक जनप्रतिनिधि सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाएं तथा प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग करे, तो वह अपने निर्वाचन क्षेत्र की चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान कर सकता है और जनाकांक्षाओं को पूरा कर सकता है। उन्होंने जनप्रतिनिधियों से विधायी कार्यों में दक्षता तथा पारदर्शिता बढ़ाने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सकारात्मक चर्चा तथा सुविचारित तर्क प्रस्तुत करने से व्यक्ति और संस्था दोनों की प्रतिष्ठा बढ़ती है।

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की “एक राष्ट्र एक विधायी मंच” पहल का उल्लेख करते हुए ओम बिरला ने विश्वास व्यक्त किया कि भारत की संसद निकट भविष्य में सभी राज्य विधानमंडलों के लिए एक साझा मंच तैयार करेगी, जिससे विधायी चर्चा, बजट तथा अन्य विधायी पहलों संबंधी जानकारी का आदान-प्रदान सुचारु रूप से हो पाएगा। उन्होंने कहा कि इस पहल से राज्य विधानमंडलों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होगी तथा संघवाद और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा, जिसका लाभ अंततः लोगों को होगा। उन्होंने भारत की संसद में की जा रही डिजिटल पहलों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की संसद संसदीय कार्य में दक्षता बढ़ाने के लिए एआई का व्यापक रूप से उपयोग कर रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय विधानमंडल के रूप में संसद की यह जिम्मेदारी है कि वह पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देने के लिए इन आधुनिक तकनीकी साधनों को राज्य विधानसभाओं के साथ साझा करे। उन्होंने कहा कि जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों से जो अपेक्षाएं रखती है, उन्हें शिष्ट आचरण और प्रभावी शासन के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि ग्राम पंचायतों से लेकर नगर पालिकाओं और राज्य विधानसभाओं तक, निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी संस्थाओं को संवाद, नवाचार और उत्कृष्टता का केंद्र बनाना चाहिए। डॉ. बी.आर. अंबेडकर को उद्धृत करते हुए बिरला ने कहा कि किसी भी संविधान या संस्था की सफलता उसके सदस्यों और अनुयायियों के आचरण पर निर्भर करती है। उन्होंने इस बात का उल्लेख भी किया कि विधायी संस्थाओं को सशक्त बनाना तथा चर्चा-संवाद को बढ़ावा देकर उनकी गरिमा बनाए रखना आवश्यक है जिससे संस्थाओं और प्रतिनिधियों दोनों की विश्वसनीयता बढ़ेगी।

हिमाचल विधान सभा का देश की पहली पेपरलेस विधानसभा होना गर्व की बात

हिमाचल प्रदेश की गौरवशाली लोकतांत्रिक विरासत के बारे में बात करते हुए उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि 1921 में पीठासीन अधिकारियों का पहला सम्मेलन शिमला में आयोजित किया गया था, जो लोकतांत्रिक सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक क्षण था। उन्होंने यह भी कहा कि विट्ठलभाई पटेल भी हिमाचल प्रदेश से केंद्रीय विधान परिषद के सभापति चुने गए थे। उन्होंने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि हिमाचल विधान सभा देश की पहली पेपरलेस विधानसभा है।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश, हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया, हिमाचल प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन चौहान और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। वहीं जोन-2 से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के पीठासीन अधिकारी तथा उत्तर प्रदेश विधान सभा, कर्नाटक विधान सभा, तेलंगाना विधान सभा और विधान परिषद के पीठासीन अधिकारी तथा हिमाचल प्रदेश विधानमंडल के सदस्यों भी इस दौरान मौजूद रहे।

(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया

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