HEADLINES

राजस्थान के ग्राम बहज में मिले 7000 साल पुरानी लुप्त नदी के साक्ष्य, सरस्वती नदी से हो सकता है कनेक्शन

बहज गांव में मिले 7000 साल पुरानी लुप्त नदी के साक्ष्य
बहज गांव में मिले 7000 साल पुरानी लुप्त नदी के साक्ष्य
करीब 5000 साल पुराने चित्रित धूसर मृदभांड

नई दिल्ली, 30 जून (Udaipur Kiran) । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को राजस्थान के डीग जिले के बहज गांव में 7000 पुरानी लुप्त हो चुकी नदी के साक्ष्य मिले हैं। विशेषज्ञ इसे पौराणिक काल की सरस्वती नदी से जोड़ कर देख रहे हैं। दरअसल एएसआई को बहज गांव के एक टीले में उत्खनन के दौरान 23 मीटर नीचे पेलियो चैनल यानी पानी की लहरों के साफ साक्ष्य मिले हैं। लहरों की दिशा उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व दिशा की ओर है जो प्रयागराज दिशा की तरफ बहने की ओर इशारा करती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सरस्वती नदी भी प्रयागराज में गंगा में मिलती थी।

इस लुप्त नदी के लहरों की दिशा और इसके प्राचीनता को देखते हुए विशेषज्ञ इस लुप्त नदी को ऋग्वेद की सरस्वती नदी से जोड़ कर देख रहे हैं। हालांकि अभी इन साक्ष्यों पर विशेषज्ञ जांच कर रहे हैं। यह जल प्रणाली संभवतः प्रारंभिक मानव बस्तियों की ओर इशारा करती है जो सरस्वती घाटी को मथुरा और ब्रज क्षेत्रों से जोड़ती थी। इस बात को इसलिए भी जोड़ा जासकता है क्योंकि बहज से मथुरा करीब 35 किलोमीटर दूर है।

एएसआई के जयपुर मंडल अधीक्षण पुरातत्त्वविद डॉ विनय कुमार गुप्ता ने बताया कि खुदाई स्थल के २३ मीटर की गहराई पर एक लुप्त नदी के बहाव के निशान मिले हैं। यह निशान बहज टीले के मध्य में मिले हैं तथा इसके ऊपर सिल्ट और कैल्क्रीट का जमाव है। बहज गांव की खुदाई में प्रचीन लुप्त नदी के साक्ष्य के साथ महाभारत कालीन पुरावशेष भी मिले हैं। बहज की खुदाई में 3.5 मीटर से लेकर 8 मीटर तक पेंटेंट ग्रे वेयर यानी चित्रित धूसर मृदभांड मिले हैं। जो हस्तिनापुर की खुदाई में 80 सेंटीमीटर तक मिला था। इस चित्रित धूसरमृदभांड संस्कृति को इतिहास में अब तक महाभारत कालीन माना जाता रहा है। उस लिहाज़ से बहज अब तक की सबसे महत्वपूर्ण साइट है क्योंकि इतने बड़ी संख्या में चित्रित धूसर मृदभांड जमाव आज तक कहीं भी प्राप्त नहीं हुआ है।

एएसआई के मुताबिक बहज में 5000-4500 साल पुरानी सभ्यता के साक्ष्य भी मिले हैं जो गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति के समकालीन है। एएसआई के अनुसार खुदाई में मिट्टी के बर्तन और हवन कुंड हैं, जिनमें आयताकार और गोलाकार पेंटिंग और अग्नि अनुष्ठानों के अवशेष मिले हैं। यहां मिले पुरावशेष गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति के समकालीन हो सकती है। यानी 2500-2000 ईसा पूर्व के अवेशष मिले हैं। यहां काले रंग की चित्रकारी के साथ लाल मिट्टी के बर्तन मिले थे। गणेश्वर ने मुख्य रूप से हड़प्पा को तांबे की वस्तुओं की आपूर्ति की। गणेश्वर संस्कृति का अधिकांश भाग एक पूर्व-हड़प्पा ताम्रपाषाण संस्कृति माना जा सकता है जिसने परिपक्व हड़प्पा संस्कृति के निर्माण में योगदान दिया।

————

(Udaipur Kiran) / विजयालक्ष्मी

Most Popular

To Top