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समर्पण की पराकाष्ठा हैं सावरकर – अनिल ओक

समर्पण की पराकाष्ठा हैं सावरकर – अनिल ओक
समर्पण की पराकाष्ठा हैं सावरकर – अनिल ओक

-भाषा और मार्ग अलग हो सकते हैं, पर भाव और गंतव्य एक – अनिल ओक -संघ शिक्षा वर्ग के समापन कार्यक्रम पर बोले आरएसएस के अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख

उदयपुर, 6 जून (Udaipur Kiran) । भाषाएं, मार्ग और वेशभूषा भले ही भिन्न हों, परंतु भाव और गंतव्य एक है – यही सनातन संस्कृति की विशेषता है। विविधता भारत की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी सुंदरता और शक्ति है।

यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख अनिल ओक ने विद्या निकेतन, उदयपुर में चल रहे संघ शिक्षा वर्ग (शालेय विद्यार्थी) के समापन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि किसी में इतनी ताकत नहीं कि भारत को समाप्त कर सके, क्योंकि इस देश ने वीर सावरकर जैसे महान आत्मबलिदानी पैदा किए हैं। वीर सावरकर समर्पण की पराकाष्ठा थे – जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।

उन्होंने यह भी कहा कि जहां लोकशक्ति खड़ी होती है, वहाँ सेना और सरकार को बल मिलता है। समाज के हर व्यक्ति में कोई न कोई सद्गुण होता है, आवश्यकता है उसे पहचानने और प्रोत्साहित करने की। यदि समाज के प्रत्येक व्यक्ति के गुणों को ऊपर उठाया जाए तो राष्ट्र निर्माण की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ा जा सकता है।

संघ के पंच परिवर्तन की याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि स्व के प्रति गौरव रखना है। हमारी भाषा, भूषा, भोजन, भवन, भ्रमण, भजन – सब कुछ स्वदेशी हो। जो भी संसाधन हमारे देश में उपलब्ध हैं, उनका उपयोग करें – विदेश पर निर्भरता न रखें।

पर्यावरण, सामाजिक समरसता और नागरिक कर्तव्यों पर भी उन्होंने बल दिया। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक से बचें, अनावश्यक जल और बिजली का उपयोग न करें। परिवारों में संवाद बढ़ाएं, कुटुम्ब प्रबोधन करें और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहें।

उन्होंने स्वामी विवेकानंद के वाक्य का स्मरण करते हुए कहा, “प्रामाणिक रहो, निर्भय बनो, अपने स्व के गौरव पर अडिग रहो – तभी सशक्त भारत का निर्माण संभव है।”उन्होंने यह भी कहा कि “राष्ट्र की एकता और अखंडता तभी संभव है जब हम स्वयं को, अपनी संस्कृति को और अपने मूल्यों को समझें और अपनाएं।”

समारोह के मुख्य अतिथि शौर्य चक्र से सम्मानित कर्नल जी. एल. पानेरी ने कहा कि संघ की परेड में बच्चों का अनुशासन देखकर अभिभूत हूं। मेरे जीवन में अनुशासन का स्थान सर्वोपरि रहा है – मैं सदैव शाकाहारी रहा और नियमित व्यायाम करता हूं। देश पहले आता है – यह भावना हर नागरिक के हृदय में होनी चाहिए।

कार्यक्रम का आरंभ घोष रचना के साथ ध्वजारोहण और प्रार्थना से हुआ। तत्पश्चात 15 दिन के इस वर्ग में भाग लेने वाले 297 स्वयंसेवकों ने सामूहिक समता, घोष, नि:युद्ध, पद विन्यास, आसन, सर्वयोग, दंड एवं दंड युद्ध का प्रभावी प्रदर्शन किया। वर्ग कार्यवाह अशोक सुथार ने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए बताया कि यह वर्ग चित्तौड़ प्रांत के 27 जिलों के 207 स्थानों से आए शालेय विद्यार्थियों के लिए आयोजित किया गया था।

समारोह में ऑपरेशन सिंदूर की प्रभावशाली झांकी विशेष आकर्षण का केंद्र रही। साथ ही, प्रेरणादायक पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए साहित्य विक्रय स्टॉल लगाया गया। गौ संवर्द्धन एवं स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहित करने हेतु गौ-उत्पाद विक्रय केंद्र भी लगाया गया। समारोह में मंच पर विभाग संचालक हेमेंद्र श्रीमाली, महानगर संघचालक गोविंद अग्रवाल एवं वर्ग सर्वाधिकारी सरदार अमरसिंह भी उपस्थित रहे।

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(Udaipur Kiran) / सुनीता

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