


अहिल्याबाई होल्कर जन्म त्रिशताब्दी वर्ष कार्यक्रम में शामिल हुए भाजपा नेताअहिल्याबाई होल्कर की विरासत को बढ़ाने का कार्य कर रहे मोदी-योगी: संताेष
लखनऊ, 29 मई (Udaipur Kiran) । भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने कहा कि महारानी अहिल्याबाई होल्कर अजेय रहीं। वे कभी कोई युद्ध नहीं हारीं। धर्म-संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए उनका बहुत बड़ा योगदान है। काशी में यदि मंदिर है तो उसका एकमात्र कारण अहिल्याबाई होल्कर हैं। यदि वे नहीं होतीं तो काशी में मंदिर का यह रूप नहीं देख सकते थे।
भाजपा नेता बीएल संतोष गुरुवार को डॉ. राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय में आयोजित ‘पुण्यश्लोक’ पूज्य देवी अहिल्याबाई होल्कर जन्म त्रिशताब्दी वर्ष स्मृति अभियान 2025 कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। पार्टी के संगठन मंत्री बीएल संतोष ने अहिल्याबाई होल्कर के आदर्श को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की अपील की। उन्होंने कहा कि अहिल्या बाई होल्कर के जीवन की हर पंक्ति पुण्यश्लोक जैसी है। उनकी कहानी सुनते-सुनते बड़े-बड़े इतिहासकारों ने अहिल्याबाई होल्कर को रानी, लोकमाता, लोकमंगल, प्रजावत्सला के बाद पुण्यश्लोक भी लिखा। बीएल संतोष ने कहा कि सप्तपुरी, चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग यानी इन 23 स्थानों पर अहिल्याबाई होल्कर ने अनेक कार्य किया। उन्होंने समाज का सहयोग लेते हुए बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया है। मोदी-योगी भी उसी विरासत को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं।
भाजपा नेता संताेष ने कहा कि महिला सशक्तिकरण, महिला भागीदारी के साथ ही महिला नेतृत्व का भी विकास हो रहा है। अहिल्याबाई होल्कर ने शासन के लिए उस समय सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की बात कही थी। महात्मा गांधी ने रामराज्य, आचार्य विनोवा भावे ने सर्वोदय, पं. दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबका साथ-सबका विकास की बात की। बीएल संतोष ने कहा कि मोदी-योगी के कार्यकाल में अभी बहुत कुछ मिलने वाला है। मणिकर्णिका घाट के निर्माण में उनका बड़ा योगदान है। हरिद्वार, प्रयाग, अयोध्या में सरयू घाट का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने किया। सोमनाथ, कांची, रामेश्वरम, भीमाशंकर, श्रीशैलम में इन्होंने धर्मशालाओं का निर्माण, पीने के पानी, भंडारा की व्यवस्था की। पुजारियों के पूजा की जो व्यवस्था की, वह आज भी चालू है।
अहिल्या बाई होल्कर के जीवन की हर पंक्ति पुण्यश्लोक जैसीउन्होंने रामायण की चर्चा से बात की शुरुआत की, फिर अहिल्याबाई होल्कर के ‘पुण्यश्लोक’ उपाधि की चर्चा की। उन्होंने बताया कि अहिल्याबाई होल्कर का जीवन, साधना, कृतित्व, समाज, किसानों, महिलाओं, आर्थिक व्यवहार, पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर भी बहुत पुण्य का कार्य किया।
महारानी ने महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य किया संतोष ने कहा कि देश का दुर्भाग्य है कि हमने स्कूल-कॉलेज में अहिल्याबाई के बारे में नहीं पढ़ा। शासन करने वाले लोगों ने लंबे समय तक शिवाजी, महाराणा प्रताप, अहिल्याबाई होल्कर के बारे में पाठ्यक्रम में आने नहीं दिया। देश में 300 साल पहले जब महिला सशक्तिकरण का नाम ही नहीं था, तब एक रानी ने इतना बड़ा काम किया। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर को आज मिजोरम, मेघालय से लेकर कर्नाटक, अंडमान निकोबार, केरल तक लोग याद कर रहे हैं। मुरादाबाद, उत्तराखंड, कर्नाटक में उनकी प्रतिमा स्थापित हुई। अहिल्याबाई होल्कर ने जीवन में दुख सहते हुए भी प्रजा की सेवा की।
न्याय से परिपूर्ण थी उनकी प्रथाबीएल संतोष ने कहा कि होल्कर ने महिलाओं, किसानों, सिंचाई, व्यापार, आर्थिकी बढ़ाने और कारीगरों के लिए बहुत कार्य किया। हजारों कारीगरों को एकत्र कर माहेश्वरी ब्रांड क्रिएट किया और माहेश्वरी साड़ी को विश्व प्रसिद्ध किया। सिंचाई, सेना, पड़ोसी राज्यों के संबंध में उनके द्वारा किए गए कार्य अतुलनीय रहे। जिनके पास जमीन नहीं थी, अहिल्याबाई होल्कर उन्हें अपने राज्य की जमीन देती थीं। रानी का नियम था कि इस पर 12 पेड़ लगाना ही चाहिए। इसका परीक्षण भी किया जाता था। पांच-छह साल में उस पेड़ से कुछ मिलना शुरू होता था। वे कहती थीं कि सात पेड़ की उत्पत्ति उस घर की है, लेकिन पांच से होने वाली उत्पत्ति टैक्स के कारण राज्य को देनी चाहिए। उनकी प्रथा न्याय से परिपूर्ण थी।
महिला कल्याण व विधवा के लिए अनेक प्रशंसनीय कार्य किए उन्होंने बताया कि इंदौर के पास उनके समय की सिंचाई व्यवस्था की चर्चा की। उन्होंने किसानों की सुरक्षा, समृद्धि के लिए बहुत कार्य किया। ब्रिटिश वायसराय ने भी उनकी प्रशंसा की थी। वे पड़ोसी राज्यों के साथ अच्छे संबंध रखती थीं। संवाद के जरिए महिला कल्याण, विधवाओं के लिए उन्होंने अनेक प्रशंसनीय कार्य किये। अहिल्याबाई की साथी रेणुका देवी विधवा थी, लेकिन उन्होंने उनकी शादी कराई। विधवा महिला किसी को गोद ले सकतीं, संपत्ति को किसी को दे सकती हैं। उन्होंने टैक्स भी समान कर दिया था।
(Udaipur Kiran) / बृजनंदन
