Madhya Pradesh

देवी अहिल्या के महिला सशक्तिकरण के पद चिन्हों पर चलकर पिंक बस की स्टेयरिंग थाम संघर्ष की मिसाल बनी निशा शर्मा

निशा शर्मा (फाइल फोटो)

(देवी अहिल्याबाई की 300वीं जयंती पर विशेष)

इंदौर, 27 मई (Udaipur Kiran) । महिलाओं के उत्थान और आत्मनिर्भरता की प्रतीक देवी अहिल्या बाई होलकर ने जिस इंदौर को अपनी न्यायप्रियता, दूरदर्शिता और सेवा भावना से सजाया, उसी इंदौर की सड़कों पर आज एक और महिला उनके पदचिन्हों पर चलते हुए प्रेरणा बन रही है। उस महिला का नाम निशा शर्मा है, जो पिंक आई बस की स्टेयरिंग थामे नारी शक्ति का परिचय दे रही हैं।

जनसम्पर्क अधिकारी महिपाल अजय ने मंगलवार को जानकारी देते हुए बताया कि जनजातीय बहुल क्षेत्र धार ‍जिले के मनावर तहसील के छोटे से गाँव देवला की निशा शर्मा आज एआईसीटीएसएल की पिंक आई बस चलाकर महिलाओं को प्रेरणा दे रही है। वह रोजाना सुबह 6 बजे एआईसीटीएसएल के विजय नगर डिपो पर पहुँच जाती है। वहाँ से पिंक बस लेकर बीआरटीएस की कॉरिडोर पर राजीव गाँधी चौराहे तक चलाती है। यह सफर दोपहर 2 बजे तक अनवरत चलता है। कभी-कभी वह स्वैच्छा से दूसरी शिफ्ट में भी ड्यूटी देती है। इसके बाद भी उनके चेहरे पर कोई थकान नजर नहीं आती। पिछले तीन वर्ष से वह एआईसीटीएसएल की पिंक बस में अपनी सेवाएं दे रही है।

एआईसीटीएसएल की महिला चालक निशा शर्मा का जीवन बड़ा संघर्षपूर्ण रहा। जब वह तीन वर्ष की थी, तो उनके पिता की गोली लगने से मृत्यु हो गई थी। पिता आर्मी में गनर थे। उनकी पोस्टिंग दिल्ली में थी। परिस्थितिवश पूरा परिवार मानपुर आ गया। मानपुर में ही माँ ने मेहनत-मजदूरी की। इस कार्य में निशा ने भी हाथ बटाया। वह भी अपनी माँ के साथ खेतों में मजदूरी करने जाती थी। छोटी सी उम्र में उसने खेती और किसानी का सारा कार्य सीख लिया। उन्होंने मनरेगा योजना में भी काम किया और घर की आर्थिक स्थिति सुधारी।

घर की जिम्मेदारियों की वजह से निशा अधिक पढ़-लिख नहीं पायी। एक दिन माँ को लकवे का अटैक आ गया। घर में कोई पुरुष नहीं था और माँ को अस्पताल ले जाना जरूरी था। वाहन के अभाव में मजबूरी वश माँ रात भर घर पर रही। माँ की इस स्थिति को देखकर निशा ने उसी दिन ठान लिया कि कुछ भी हो, मुझे वाहन चलाना सीखना ही होगा। इस सोच के बाद निशा की दिशा ही बदल गई। उसने गाँव के ही कुछ लोगों के सामने गाड़ी सीखने की बात कहीं, तो जवाब मिला लड़की गाड़ी चलाकर क्या करेंगी? कहीं ठोक देगी आदि उपेक्षा की गई। अंततः मुँह बोले अपने मामा ने निशा की भावनाओं को समझा और उसे गाड़ी चलाना सिखाया।

इसके बाद निशा चार वर्ष तक अपनी माँ को कार में बिठाकर इलाज के लिए महू अस्पताल लाने और वापसी ले जाने का कार्य करती रही। कभी-कभी कार से ही इंदौर भी उपचार के लिए लाती थी। इसी अवधि में निशा ने खेती में मजदूरी के साथ-साथ सिलाई का काम भी किया। साथ ही कार के अलावा निशा ने ट्रैक्टर, आयशर, पिकअप और यहां तक यात्री बस चलाना भी सीख लिया। एक दिन महू अस्पताल के अधिकारी ने बताया कि इंदौर में एआईसीटीएसएल को महिला चालक की आवश्यकता है। निशा ने एआईसीटीएसएल ऑफिस आकर संपर्क किया और संयोग से उसका चयन हो गया। उसके बाद से उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह भोर होते ही पिंक टीशर्ट और ब्लैक पेंट की ड्रेस में एआईसीटीएसएल के ऑफिस में पहुँचकर पिंक आईबस चलाकर महिलाओं को सुरक्षित सफर करा रही है। गौरतलब है कि इस पिंक बस में केवल महिलाएं ही सफर करती है।

(Udaipur Kiran) तोमर

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