
-पक्षकार बनने की अर्जी खारिज, कहा- ठोस सबूत के साथ आये राधा रानी-मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामला
प्रयागराज, 26 मई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भगवान श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले मे “श्रीजी राधा रानी“ को पक्षकार बनाने की दायर अर्जी खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने खुद को मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद स्थल की 13.37 एकड़ जमीन का सह-स्वामी बताया है।
मुख्य बिंदुःकोर्ट ने कहा कि राधा रानी का यह दावा पुराणों और संहिताओं में दिए गए संदर्भों पर आधारित है, जिसे कानूनी संदर्भ में श्रुत साक्ष्य माना जाता है। कहा कि राधा रानी की ओर से ऐसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया जिससे यह साबित हो सके कि वह विवादित संपत्ति की सह स्वामी थीं या विवादित संपत्ति में उनका कोई मंदिर था।
याची का कहना था कि “श्रीजी राधा रानी वृषभानु कुमारी वृंदावनी“ ने अपनी अगली दोस्त रीना नेहरू-रीना एन सिंह के माध्यम से अर्जी दायर की है। उनका तर्क था कि वह भगवान श्रीकृष्ण लला विराजमान की पत्नी हैं और दोनों अनादि काल से देवता के रूप में पूजे जाते हैं। कहा कि वे 13.37 एकड़ जमीन के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण की सह खातेदार हैं जिस पर कथित रूप से शाही ईदगाह मस्जिद बनी है।
कोर्ट ने कहा कि आवेदक मुकदमे के लिए न तो आवश्यक पक्ष पाया गया और न ही उचित पक्ष। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि अगर भविष्य में आवेदक इस दावे के समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश करता है कि वह वाद की संपत्ति का सह स्वामी है तो उचित समय पर पक्षकार बनाने के प्रश्न पर विचार किया जा सकता है।
यह सिविल वाद मूल रूप से मथुरा के सिविल जज वरिष्ठ श्रेणी की अदालत में दायर किया गया था। 26 मई 2023 को सभी वादों को हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। वादी ने यह दावा किया है कि कृष्ण जन्मस्थान मंदिर, जो अब शाही ईदगाह मस्जिद के नाम से जाना जाता है, पर 1669-70 से अतिक्रमण किया गया है और यह मुकदमा इस अवैध अतिक्रमण को हटाने के लिए दायर किया गया है।
वादी (श्री भगवान श्रीकृष्ण लला विराजमान और 4 अन्य) के अधिवक्ता ने राधा रानी की अर्जी का कड़ा विरोध किया। तर्क दिया कि राधा रानी का दावा मूल वाद के तथ्यों और प्रकृति के विरुद्ध है और इससे मुकदमे की मूल संरचना बदल जाएगी। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि राधा रानी ने पहले ही सिविल जज (एस.डी.) के समक्ष एक नया मुकदमा (दीवानी वाद संख्या 62/2024) दायर किया है, जिसमें उन्होंने इमारत को हटाने/ध्वस्त करने का आदेश मांगा है।
कोर्ट ने आदेश 1 नियम 10 सीपीसी के तहत ’आवश्यक पक्ष’ और ’उचित पक्ष’ के कानूनी सिद्धांतों का हवाला दिया। ’आवश्यक पक्ष’ वह होता है जिसके बिना कोई प्रभावी निर्णय पारित नहीं किया जा सकता, जबकि ’उचित पक्ष’ वह होता है जिसकी उपस्थिति विवाद के सभी मामलों को पूरी तरह से तय करने के लिए आवश्यक हो सकती है, भले ही उसके पक्ष में या उसके खिलाफ कोई निर्णय न दिया जाना हो। अदालत ने दोहराया कि वादी “मुकदमा चलाने वाला“ होता है और उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी को भी पक्षकार नहीं बनाया जा सकता जब तक कि वह आवश्यक या उचित पक्ष न हो। इस मामले की अगली सुनवाई 04 जुलाई 2025 को होगी।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
